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माँ के आंचल में लेकर किलकारी,
बोलना सीखते अपनी मातृभाषा।
जिसमें बुने जाते हैं मीठे-मीठे रिश्ते,
पाकर जिसे पूरी हो हर अभिलाषा।
बरगद-सी,अमराई-सी है मातृभाषा,
फैली है हमारे अंदर इसकी आभा।
समाज,परिवार,देश की मजबूती,
गठबंधन बनाए रखती है मातृभाषा।
बहुत दुखती है,हिन्दी की अंतरात्मा,
जब हम शान से बोलते अंग्रेजी भाषा।
जीवन के हर पथ पर साथ निभाती,
सदा मुस्कराते हुए हमारी ‘मातृभाषा।’
#गोपाल कौशल
परिचय : गोपाल कौशल नागदा जिला धार (मध्यप्रदेश) में रहते हैं और रोज एक नई कविता लिखने की आदत बना रखी है।
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