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तुम पतंग
मैं धागा,
भाग्यवान तुम
मैं अभागा,
कर्तव्य निभाया
दृढ़ता से तुमने,
मैं भागा
तुम पतंग,
मैं धागा।
अपनी निष्ठा
शिष्टाचार से,
अपने सुलझे
विचार से,
अपनों के सहे
वार से,
अपने सुंदर
परिवार से
भूखा न जाने दिया
द्वार से,
इन्हीं सद्कर्मों की
वजह से
आपको काट,कोई
धागे से अलग न कर सका
इतने तक
धागे को ले साथ उड़ती रही
दूसरी पतंगों को
दे मार्गदर्शन,
आकाश में और ऊंचाई से
जुड़ती रही,
तभी तुम पर झपटा
यम रूपी कागा,
तुम पतंग
मैं धागा।
अंततः कब तक
इस लोक में
ऊंचाई लिए रहती ?
हवा के रुख को
कैसे और कब तक सहती ?
हवा के थपेड़ों से
तूंफा के बेड़ों से,
धागा भी थक चुका था
वे जीवित रहे
कट न जाए कहीं,
इसलिए धागा
कितनी जगह झुका था,
किन्तु सत्य को
कौन झुठला पाया,
पतंग धागे की जिंदगी से
कट गई,
छोड़ धागे को अकेला
न जाने क्यों हट गई ?
क्यों हट गई ?
क्यों-क्यों हट गई ?
#सुनील चौरे ‘उपमन्यु’
परिचय : कक्षा 8 वीं से ही लेखन कर रहे सुनील चौरे साहित्यिक जगत में ‘उपमन्यु’ नाम से पहचान रखते हैं। इस अनवरत यात्रा में ‘मेरी परछाईयां सच की’ काव्य संग्रह हिन्दी में अलीगढ़ से और व्यंग्य संग्रह ‘गधा जब बोल उठा’ जयपुर से,बाल कहानी संग्रह ‘राख का दारोगा’ जयपुर से तथा
बाल कविता संग्रह भी जयपुर से ही प्रकाशित हुआ है। एक कविता संग्रह हिन्दी में ही प्रकाशन की तैयारी में है।
लोकभाषा निमाड़ी में ‘बेताल का प्रश्न’ व्यंग्य संग्रह आ चुका है तो,निमाड़ी काव्य काव्य संग्रह स्थानीय स्तर पर प्रकाशित है। आप खंडवा में रहते हैं। आडियो कैसेट,विभिन्न टी.वी. चैनल पर आपके कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं। साथ ही अखिल भारतीय मंचों पर भी काव्य पाठ के अनुभवी हैं। परिचर्चा भी आयोजित कराते रहे हैं तो अभिनय में नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से साक्षरता अभियान हेतु कार्य किया है। आप वैवाहिक जीवन के बाद अपने लेखन के मुकाम की वजह अपनी पत्नी को ही मानते हैं। जीवन संगिनी को ब्रेस्ट केन्सर से खो चुके श्री चौरे को साहित्य-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे ही अग्रणी करती थी।
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Tue Jan 16 , 2018
पिता,बेटे के होंठों पर मुस्कान करते हैं, मुश्किलें सारी आसान करते हैं। पिता होते है भगवान स्वरूप, जिसपे हम अभिमान करते हैं। मौजूदगी से महकता है घर-आंगन, पिता का हम गुणगान करते हैं। पिता की मेहनत से बनते हैं हम काबिल, पिता के दम से ही हम नाम करते हैं। […]