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वो जो हर रोज बरसते थे घटाओं की तरह ,
हम भी एक रोज जो बरसे तो बुरा मान गए।
कभी शाखों से गुलों को नहीं तोड़ा करते,
उनको दी थी जो हिदायत तो बुरा मान गए।
फूल मसले जो उन्होंने नहीं देखे कांटे,
एक कांटा जो चुभा था तो बुरा मान गए।
वो जो जुल्मों व सितम ढाते रहे बन के खुदा,
उन्हें आइना जो दिखाया तो बुरा मान गए।
वो जो हर रोज जलाते थे घरों को यारों,
अपने घर आंच जो आई तो बुरा
मान गए॥
#सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’
परिचय: सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ का जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं जिनकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न २०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान,विभिन्न कैसेट्स में गीत रिकॉर्ड होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं।
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