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तड़प रही हूँ आज भी,
बयालीस साल पहले जो थी
वही तड़प आज भी है।
तब रो रही थी,
गिड़गिड़ा रही थी हर जगह
कभी मंदिर के द्वार
कभी गिरजा,मस्जिद,गुरुद्वारा…
और कभी एक से बढ़कर एक
चिकित्सक के पास,पति के समक्ष
सिर्फ एक बच्चा दें…
मैं भी मुक्त रहूँ,
बाँझ के नाम से॥
तू आया कुछ तड़प मिटा।
मेरा जो कुछ था,सब-कुछ
तुम पर लुटा दिया
माँ की स्वर्गीय ममता को,
आँचल में मैंने छुपा लिया।
हर पल एक तड़प थी
बेटा सकुशल रहे।
न छू सके आंधी तूफान,
न सुखा सके धूप तुझे।
जमीन पर न रखूँ तुझे
कहीं काट न लें कीड़े तुम्हें,
सिर पर न रख पाऊँ
जुओं के डर से॥
तुझे सुलाने के चक्कर में
कई रातें जाग रही,
तेरा पेट भरने के चक्कर में
न जाने कितने दिन मैं भूखी रही,
तड़प थी जो एक माँ के हृदय की।
मेरा बेटा पढ़-लिखकर बड़ा बने
हरदम यह सपना था,
तेरी हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए
न जाने मैंने मेरे कितने अरमानों का,
गला यू ही घोंट दिया॥
तुम बन गए अधिकारी,
मेरे मुँह में सूर्यमुखी खिल गया
तड़प धड़कनों की कुछ बुझ गई।
बहू मिली,हंसी-खुशी
दो पोते आते ही घर खिल उठा।
लगता मेरी तड़प खत्म हुई॥
आज मैं खुद को कोस रही हूँ,
उस तड़प को क्यों आने दी
संतानहीन रहती तो ठीक थी,
खुद को न कोसना पड़ता।
क्या कमी थी मेरी परवरिश में,
कल आकर रख गया मुझे
इस वृद्धाश्रम में,
तेरे लिए तड़पते हुए इस दिल की
धड़कन क्यों न बंद हो जाती,
आज बंद होते-होते
फिर किसी ने
चिकित्सक को बुला लिया।
फिर भी वो तड़प खत्म न हुई,
शायद माँ हूँ न….इसलिए॥
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है।
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