सगर हृदय इच्छा जागी मैं चक्रवर्ती सम्राट बनूं,
अश्वमेध यज्ञ मैं करवाकर,कुल और वंश जयवंत करूं।
साठ हजार पुत्र मेरे,भला मुझको कौन हराएगा,
अश्वमेध का घोड़ा मेरी,विजय ध्वजा फहराएगाll
सिंहासन जब हिला इंद्र का सगर की पूजा मंत्रों से,
ऋषि कुटी में बांधा अश्व को,इंद्र ने अपने तंत्रों से।
देख कपिल कुटी में अश्व को अपने,सगर पुत्र बलवंत हुए,
क्रोधाग्नि से भस्म किया,जब कपिल ऋषि ज्वलंत हुएll
हुए सगर बेहाल सोचते थे,ये क्या अनर्थ हो गया हाय,
साठ हजार पुत्र पल में भस्म हुए,हे शिव करो अब न्याय।
ऋषि कपिल की शरण में जा,पूछा सगर उपचार,
दंडवत होकर पूछा-बताओ कैसे करूं संतान उद्धारll
तप अग्नि से भस्म हुए हैं,सुन सगर पुत्र सब तेरे,
मुक्ति तृप्ति बस दे सकती हैं निर्मल गंगा की लहरें।
ऊं ब्रह्मादेवाय जपकर ब्रहृदेव को याद करो,
धूप दीप,कमल चढ़ाकर अपना पथ निर्बाध करोll
घोर तपस्या की सगर ने,पर त्रिदेव न प्रसन्न हुए,
अंशुमान और दिलीप चंद्र भी तपोस्थली आसन्न हुएl
देख असफल अपने पूर्वजों को,भगीरथ ने संकल्प लिया,
किया प्रसन्न ब्रह्मदेव को,कुल का कायाकल्प कियाll
एक पांव पर करी तपस्या न देखी छांव और धूप,
ब्रह्मा-विष्णु प्रसन्न हुए,कहा मांगों वत्स वर अनूप।
हे प्रभु हमको मां गंगा देकर,पित्रों का कल्याण करो,
कलयुग में जन पाप मुक्त हों,ऐसा नव निर्माण करोll
है परोपकार की चाह तुम्हारी,गंगा तुमको मिल जाएगी,
प्रचंड वेग देवी गंगा का किंतु,अचला झेल नहीं पाएगी।
जाओ शिव का जाप करो,अब वो ही कुछ कर पाएंगे,
गंगा के प्रवाह वेग को,भोले शंकर स्वयं उठाएंगेll
ऊं नमः का जाप किया,तपस्या शिवजी की कर डाली,
ऊं नमः मां गंगे जपकर,गंगा जी भी भगीरथ ने मना लीl
जटा जूट में आन विराजीं,हर्षित होकर मां गंगे,
पित्र मुक्ति को हिम से निकली,धरती पर भगीरथ संगेll
हर्ष उल्लास से कल-कल करती,
निर्मल धारा बह निकली उमड़ कर।
राह मध्य था ऋषि जह्वण आश्रम,
जिसे ले गई गंगधार बहाकर।
होकर आगबबूला ऋषि,जब पी गए गंगा सारी,
सविनय निवेदन किया भगीरथ,वापस मांगी महतारीll
हुई स्वतंत्र जब ऋषि जाहन्व से तभी जाहन्वी कहलाई,
महातपस्वी भगीरथ के नाम से भागीरथी कहलाई।
गंगाजल जब हुआ समर्पण तब पितृ उद्धार हुआ,
पितृदोष से मुक्त हो,भगीरथ मन उदगार हुआll
खग मृग नाचे,दामिनी चमकी,गंगा आगमन से धरिणी, दमकी,
गंगा दिव्य जलधारा से थीं,अचला अतिशय सुहानी हुई।
मनोरम दृश्य अदभुत दर्शित था,जब चुनरिया वसुधा की धानी हुई।
नीलम गंगा जो सूख गई तो संस्कृति-सभ्यता भी मरेगी,
होकर अपाहिज तू ही बता मनु कैसे जन पीड़ा और प्यास भरेगी।
आओ मिलकर लें भीष्म प्रतिज्ञा कि पावनी गंगा फिर से निर्मल होगी,
फिर से यह पतित पावन सुधा धारा,सलिल स्वच्छंद विमल अविरल बहेगी।
नीलम प्रदूषित गंगा से,निश्चित तय है सब जीव मरणl
सोचो बिना गंगाजल के हम,जीवन में लेंगे किसकी शरणll
#नीलम शर्मा
परिचय : श्रीमती नीलम शर्मा का निवास दिल्ली में हैlशिक्षा-एम.ए. और कार्य-शिक्षिका का है। आपकी जन्मतिथि ५ अक्टूबर १९७७ तथा जन्मस्थान दिल्ली हैlशादी से पहले भी लिखा करतीं थीं,अब एक डेढ़ साल से पुनः लिखना शुरू किया है। रुचि-गीत,गज़ल,नाटक,संस्मरण,भक्ति गीत,कविता,मुक्तक और दोहा लेखन आदि में है। हास्य कवि सम्मेलन में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। अब तक करीब २९५ रचनाएं लिख चुकी हैं। आप सोशल मीडिया और ब्लॉग पर भी लिखती हैं। कई ऑनलाइन मंचों पर आपकी हिंदी कविताएं प्रकाशित हुई हैंl
बहुत सुंदर रचना। बधाई।