शीला बहुत उदास मन से बोली-दीदी मेरी एक ही बेटी है,मैंने इसके पालन-पोषण में कोई कमी नहीं रखी। हम दोनों तो नीरे अनपढ़ हैं,किन्तु हमारे जीने का मकसद ही शिबू को खूब पढ़ाना है,उसे बचपन से ही अच्छे अंग्रेजी विद्यालय में भरती करवा दिया था,क्योंकि हम जानते थे कि बाद में हमे अनपढ़ देख शिबू को कोई अच्छे विद्यालय में नहीं लेगा। पिछले चार साल सेंतीस-पैतीस हजार रुपए साल की फीस भरती हूँ,ट्यूशन पर भी भेजती हूँ,फिर भी उसे कुछ नहीं आया। आज मुझे मैडम ने विद्यालय बुलाया और बताया कि,इसे कुछ नहीं आता। कोई सरकारी शाला में भर्ती करा दो। दीदी मेरे तो सपने ही ख़ाक हो गए,इतने साल की मेहनत बेकार हो गई। इस पर शिबू कहती है-माँ तू घबरा मत,मुझे कोई सस्ते विद्यालय में डाल दे,मैं वहां पढ़ लूंगी और देखना एक दिन बड़ी अधिकारी बनूंगी। I
सच में शीला बेबस थी,और मैं यह सोचकर परेशान थी कि सच में सरकारी विद्यालयों के योग्य शिक्षक,खस्ता-जर्जर भवन,निजी विद्यालयों की बाहरी चमक के सामने कितने फीके पड़ गए हैं। शीला जैसे न जाने कितने लोगों के सपने चूर-चूर हो रहे हैं।
#नमिता दुबे
परिचय : नमिता दुबे इंदौर की निवासी हैंl आप शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं और रचनाएं-लेख लिखने का काफी पुराना शौक रखती हैंl अभी करीब एक वर्ष से अधिक सक्रिय हैं,क्योंकि पात्र-पत्रिकाओं में इनका सतत प्रकाशन हो रहा है I