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चलो अब ख़त्म हम सारी पुरानी बात करते हैं,
भुलाकर तल्ख़ियाँ सारी नई शुरुआत करते हैं।
बुझाकर नफ़रतों की आग को सब प्यार ही बाँटें,
दिलों में हम चलो पैदा वही जज्बात करते हैं॥
जहाँ तम का बसेरा है ज़रा-सी रोशनी बाँटें,
उदासी है जहाँ उनको चलो थोड़ी खुशी बाँटें।
कभी इंसानियत के फ़र्ज को यूँ भी निभाएं हम,
जिए हैं ज़िन्दगी बिन जो उन्हें कुछ ज़िन्दगी बाँटें॥
किसी की चाहतों का तुम कभी अहसास तो करते,
लबों के मौन शब्दों का कभी आभास तो करते।
तुम्हारी ज़िन्दगी में प्यार बनकर के बरसता वो,
मगर तुम चाह पर उसकी कभी विश्वास तो करते॥
किया वादा सदा हर हाल में अपना निभाते हैं,
निभा पाएं जिन्हें केवल वही रिश्ते बनाते हैं।
किसी से छल-कपट कोई कभी करते नही हैं हम,
तभी तो मुश्किलों में भी सदा हम मुस्कुराते हैं॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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