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(सत्य घटना पर आधारित )
महामान्य गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने राय दे दी कि वनांचल में जनबस्ती अवैध है। उच्च न्यायालय ने सरकार को जल्द से लोगों को यहाँ से हटाने के निर्देश दिए हैं। आमचांग असम का एक वनांचल है, जहाँ लगभग बीस साल से जनजाति के लोग रह रहे हैं। तीन सौ से अधिक घर वहाँ है। लोग अपने बच्चों समेत सुख से रह रहे थे। लोगो को सूचना दी गई कि जल्द से जल्द जगह खाली कर दी जाए, क्योंकि वह इलाका वन विभाग के अन्तर्गत है । लोग इतने वर्षों से वहाँ रह रहे हैं,अब जाए भी तो कहां जाए।
उस दिन अंचल को खाली करने के लिए सरकारी निर्देश से तीन सौ से अधिक सेना,आठ हाथी और कई जेसीबी भेज दिए गए। एकाएक तीन सौ आठ घर तोड़ दिए गए। लोगों के बीच में बवाल मच गया। लोगों ने उन्हें रोकने की कोशिश की,रोते-बिलखते प्रार्थना करने लगे,लेकिन उन लोगों के दिल तक आवाज नहीं पहुँची। रोकने की नाकामयाबी पर सेना के जवानों पर लोग पत्थर फेंकने लगे। सेना और जनता के बीच मुठभेड़ होने लगी। ‘धाँय…धाँय’.. गोली चलने लगी। कई लोगों को पकड़कर थाने ले गए और कई लोग गोली से आहत हुए। बच्चे घबराने लगे। कौन-कहां गया,कुछ पता नहीं।
अब गांव वालों के सिर पर न छत है,न खाने को कुछ और न ही पहनने के लिए कुछ। रुबी और बॉबी दोनों बहनें भूख से तड़प रही है। उनके पिताजी तो कब के स्वर्ग सिधार चुके थे,लेकिन माँ आज कहां गई। रूबी चिल्लाई-‘माँ…..माँ…..ओ माँ…..कहां हो….’?
रोने लगती है-‘भूख लगी है,कहां हो…हमारे घर भी नहीं है। आज स्कूल में भी खाने को नहीं मिला,स्कूल भी तोड़ दिया..आओ न माँ…कुछ खाने को तो देकर जाओ।’
बाॅबी बोली-‘चाची हमारी माँ को कहीं देखा है क्या ?’
वो औरत भी रो रही थी। बाॅबी की आवाज उनके कानों तक नहीं पहुँची। माँ को ढूंढते हुए दोनों सड़क तक आकर बैठ गई। धीरे-धीरे दिन ढलने लगा था। आमचांग जैसे श्मशान में परिणित हो गया था। धरती से दिनकर बिदा ले चुके थे। ठंड अब धरा को घेर चुकी थी। रुबी रो-रोकर थक गई थी,अब ठंड में कांपने लगी। बाॅबी को एक मैली चादर मिली। अपनी छोटी बहन को सीने में लगाकर वो चादर ओढ़ ली और सड़क पर बैठ कर माँ के इन्तजार में बेबसी की निगाहों से राह ताकने लगी…।
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है।
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