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मोबाइल और कम्प्यूटर में उलझ गया है मन,
लाओ ! चार किताबें दे दो जिसमें हो बचपन।
दादी,नानी रही न संग में कौन सुनाए किस्से,
अब तो केवल आधुनिक मम्मी-पापा हैं हिस्से।
समय की दौड़ा-दौड़ी में वो खो गया नटखटपन।
लाओ ! चार किताबें दे दो जिसमें हो बचपन।
परी लोक की बीती बातें भूले मीठी लोरी,
इन अंग्रेजी रातों में स्टोरी की है थ्योरी।
हँसी,ठहाके,किलकारी से रंग लो अब आँगन,
लाओ ! चार किताबें दे दो जिसमें हो बचपन।
चन्दा मामा मून बन गए,छत बन गई टेरेस,
खेल-खिलौने दूर हुए,अब कॉम्पिटिशन रेस।
मैदानों का दूर करें अब हम ये सूनापन।
लाओ ! चार किताबें दे दो जिसमें हो बचपन॥
#नरेन्द्रपाल जैन,उदयपुर (राजस्थान)