क्या मध्यप्रदेश सरकार बोतल बंद पानी पर प्रतिबन्ध लगाएगी

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महाराष्ट्र सरकार,प्लास्टिक मुक्त राज्य बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रही हैl महाराष्ट्र राज्य में अगले साल के मार्च से पीने की पानी के लिए प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगाl
स्वामी विवेकानंद जी से एक अमेरिकन ने पूछा-भारत और अमेरिका में क्या अंतर है ? विवेकांनद जी ने जबाव दिया-भारत के लोग रोज नहाते हैं,और अमेरिका के लोग रोज कपड़े बदलते हैंl वैसे हमारे यहाँ ताज़ा खाने-पीने
का चलन प्राचीन हैl उसका कारण हमारे यहाँ की आबो-हवा ,वातावरण और तापमान है,पर जबसे वैज्ञानिक विकास हुआ और नए-नए रासायनिक तत्व आने से जो खाने-पीने
के सामान में सरंक्षक का काम करते हैं,उनके कारण अब हमारे यहाँ भी बासी खाना-नाश्ता का चलन शुरू हुआ हैl इसके अलावा रेफ्रिजेटर संस्कृति ने भी इसको बढ़ावा दिया है इसके साथ हर खाद्य सामग्री रेडीमेड बनने से और महिलाओं का श्रम न करने के कारण इनका चलन अब आम हो गया हैl सुविधाएँ मिलने से और आर्थिक सम्पन्नता के कारण इन पर समय-श्रम की बर्बादी से बचने के लिए सरलता से सुगमता से और अन्य प्रकार की विभिन्न सामग्री
मिलने से प्रायः घरों में नाश्ता बनने का चलन कम हो गया है,पर समाप्त नहीं हुआ हैl
पहले नाश्ता या खाने में पौष्टिकता का ध्यान रखा जाता था और वो पौष्टिक भी होती थीl इसके अलावा वो शुद्ध,सस्ती और लाभवर्धक होती थी,पर आजकल पश्चिमी-पूर्वी संस्कृति ने हमारे भोजन में सेंध लगाकर खाद्य
संस्कृति को तहस-नहस कर दिया हैl इन खानों में मैदे के उपयोग के साथ घटिया तेल और अन्य घटक डाले जाते हैं जो कतई स्वास्थयवर्धक नहीं होते हैं और उनमें कुछ ऐसे तत्व डालते हैं जिससे हमारी लत-व्यसन की आदत हो जाती हैl आक्रामक बाजारवाद के कारण इन उत्पादनों की पहुंच घर -घर हो गई हैl ये खाद्य पदार्थ महंगे होने के साथ आमाशय,यकृत,गुर्दा,हृदय रोग,एलर्जिक रोग,हार्मोनल असंतुलन और अंतराल तक उपयोग करने से आंत का
कैंसर होने का अच्छा अवसर बनता हैl
अब हमारे यहाँ यह कहा जाता है कि,दूध के दाम पर पानी बिकता हैl हाँ,यह ठीक भी हैl पहले नगर निगम द्वारा कुआँ,नल-नदी-बाबड़ी के पानी का उपयोग होता थाl समय के साथ सुख-सुविधाएं बढ़ी,रेडीमेड संस्कृति
के कारण और तूफानी बाजारीकरण के कारण,प्रदूषित पानी मिलने के कारण पानी से होने वाली बीमारियों के होने से सुरक्षा के लिए पहले आर.ओ. का व्यापार बढ़ा और फिर सील पैक पानी की बोतल का चलन चलाl पहले इसे सम्पन्नता का प्रतीक माना जाता थाl कालांतर में यह एक सामान्य वस्तु हो गई हैl जैसे-जैसे मांग बढ़ी और पूर्ति के लिए कुकरमुत्ते जैसे इनकी निर्माण प्रकिया शुरू हुईl अब तो मांग इतनी अधिक है कि,गुणवत्ता की ओर ध्यान
नहीं जाता है,मात्र उपयोग ही एकमात्र लक्ष्य हैl इसके पीछे कितना घातक खेल खेला जा रहा है,इसको समझना जरुरी हैl बाकी उपयोगकर्ता को रोकना बस की बात नहीं हैl
ग्रीष्म ऋतु में इनका उपयोग लाभकारी नहीं है, ख़ास तौर पर वैसे कोई भी तरह से किसी भी ऋतु में  उपयोगी नहीं हैl कुल मिलाकर बंद बोतल का पानी कितना हानिकारक है,इसको समझेंl इस प्रकार के पानी के निर्माता के ऊपर ऍफ़एसएसएआई के अनुसार पानी की पैकिंग होनी चाहिए,पर आज तक कोई अधिकृत अधिकारी को जांचने का और परीक्षण करने कि,पानी की गुणवत्ता कैसी है,का अधिकार नहीं है,जब तक कोई शिकायत नहीं मिलती ? कुछ
हद तक खाद्य और औषधि प्रशासन को अधिकार है,पर वह कितना नियंत्रण करती है,भगवान् जानेl इन पर किसी प्रकार का नियंत्रण न होने से निर्माता अपनी मनमर्ज़ी का लाभ उठाकर हमारे स्वास्थ्य के साथ खुला
खिलवाड़ कर रहे हैं और हम इसका खामियाज़ा भुगत रहे हैंl
बॉक्स..हानिकारक होने का कारण

३० प्रतिशत से कम प्लास्टिक की  बोतल रि-साइकल्ड प्लास्टिक की होती हैl बोतल के पानी में पूर्ण रूप से
हॉर्मोन डिसरुपतिंग केमिकल होते हैंl अधिकांश बोतल के पानी में एंटी ओएस्ट्रोजन्स एंड एंटी एंड्रोजेंस होते हैंl एक कांच के गिलास से तीन गुना ओएस्ट्रोगेनिसिटी प्लास्टिक की बोतल में होती हैंl मानवीय संक्रमण के कारण एंडोक्राइन डिसरुपटोर्स के ज्यादा अवसर होते हैंl प्लास्टिक बोतल के कारण कैंसर का खतरा बढ़ता हैl १८ बोतल में से ११ बोतल में ओएस्ट्रोगेनिक का प्रभाव देखने को मिला हैl
इस प्रकार इस पानी के धंधे में हमारे साथ अत्यंत घातक खिलवाड़ हो रहा हैl मध्यप्रदेश में १४८ पैक्ड वाटर यूनिट्स हैंl मात्र भोपाल में १० के पास अधिकृत लाइसेंस हैं, और लगभग ४० अवैध ढंग से निर्माण कर
रही हैं,जिनकी गुणवत्ता पर प्रश्न चिन्ह हैl जब हम अपने घरों में ताज़ा पानी का उपयोग करते हैं,तब हम सील पैक के लोभ में कितना पुराना,हानिकारक और रोगों को आमंत्रित करने वाला पानी पीकर और दाम लगाकर उपयोग
कर रहे हैं ? इसके साथ कई जगह मात्र फ़िल्टर से साफ़ कर सीधा पानी वितरित करते हैंl वहां जाकर आप देखेंगे कि, कितने गंदे ढंग से पानी प्रदाय किया जाता हैl
इसकी शुरुआत पर्यावरण विभाग से की जाएगी,ताकि अन्य जगहों(जैसे-सभी सरकारी कार्यालयों,शालाओं-महाविद्यालयों)में बतौर मिसाल पेश किया
जा सकेl महाराष्ट्र सरकार इस राज्य को पूरा प्लास्टिक मुक्त राज्य बनाने की दिशा में काम कर रही हैl इसके अंतर्गत प्लास्टिक पाबन्दी के उल्लंघन पर ३ से ६ माह तक की सजा हो सकती हैl प्लास्टिक की बोतलों के विकल्प के तौर पर कांच की बोतलों का इस्तेमाल हो सकता हैl इसको बहुत अधिक गंभीरता से लेना उचित होगाl
इस माध्यम से आपको जानकारी देना आवश्यक है, और उपयोग करना आपके ऊपर हैl जैसा खाएंगे अन्न,वैसा होगा मन,जैसा पीएंगे पानी-वैसी होंगी वाणीl साथ ही ऐसी असाध्य बीमारियों को आमंत्रण देना क्या उचित
हैं ?

#डॉ.अरविन्द जैन

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।