कौन तड़प रहा है,इस समर भारत देश में,
क्या किया तुमने त्रिकुणी टोपी सफेद वेश मेंl
भाषण में तुम जोश लिए,भाषण राग सुनाते हो,
सुखी वादे कर हड्डियों को भी तुम सोख जाते हो।
सकल देश का क्या तुमने हाल कभी भी देखा है,
भाषण में तो तुमने नवनिर्मित विधान भी फेंका हैll
सकल हाल क्यूं देखो,पहले घर निर्माण निहित।
फूलों-भंवरा बन रस लेना है निज हित सिमितll
सीमित भारत देश नहीं ओ-सफेद वेश वाले।
रवि किरणें न पहुँचे वहां भी न रहते अंधियालेll
देखना जन-जन को तेरे भाषण की अदाई को।
देखनी है तेरी मुख जबानी और देश में चढ़ाई कोll
देख रहा है तेरे को रेशम ह्रदय वो मतवाला।
देख रहा ह्रदय छेदन चीखों को,जो करती नभ कालाll
ओ-मुरली,चक्र मतवाले करूणा के संरक्षक।
खा रहे नोंच-नोंच के ये बिन सोच के भक्षकll
मृत तन को जैसे बाज,कौआ खाते वैसे ही खात।
आशा सिमटती जब उनकी,चुग गए मेहनत आधी रातll
पसीने का रस सोख,कभी बचा अदा कर देते हैं।
सूचना साधन में जन के हित का काम बताते हैंll
एक दिन कभी महावज्र गिरेगा इनके ह्रदय पर।
खाते रहते हैं जन-जन,जगह-जगह,शहर-शहरll
शहर,गाँव की सड़क के भी तुम पत्ते खा जाते हो।
सड़क के दोनों किनारे अच्छे बीज-मिट्टी भराते होll
जन को तुम आसमानी बाज बनकर खा जाते हो।
सड़क तगदा पलट तो कर्मी को दोषी बताते होll
देश के अंधे मुखोटों जन की ताकत तुम जान लो।
कुछ ही दिनों के लिए स्वयं को मेहमान मान लोll
ईमानदारी के तुम्हें पाठ पढ़ाने वाले भी जन हैं।
और देश को चलाने वाले भी ये ही जनाधन हैंll
तुमने भाषण में स्वराज्य अब तक कहाँ पहुँचाया है,
कितने वादे याद हैं,जिनको देशहित में आजमाया हैl
घर हित कितने लगाए,अपने लिए कितने रखे हैं,
क्या स्वयं मेहनत के या आमजन से लूट रखे हैंl
इस सभ्य भारत देश के तुम भक्षक कहलाते हो,
ये अमर देश है केसरी,प्रताप जैसा जोश भराते होll
गांधीजी का पाठ पढ़ा है,इसलिए शांत खड़े होंगे।
कभी वीर ‘रणदेव’ प्रताप जैसा गोला बन टूट पड़ेंगेll
किस ओर जाना है तुमको स्वयं ही भूल जाना है,
जन में रोष आया तो चेहरा पोस्टर में आना हैl
भाषण में तो खूब जनसाथी तुम चीखकर बताते हो,
तड़प कौन रहा,न जान `रणदेव` कह टोपी लगाते होll
#रणजीतसिंह चारण ‘रणदेव'
परिचय: रणजीतसिंह चारण `रणदेव` की जन्म तारीख १५ जून १९९७ और जन्म स्थान-पच्चानपुरा(भीलवाड़ा,राजस्थान) हैl आप लेखन में उपनाम `रणदेव` वापरते हैंl वर्तमान में निवास जिला-राजसमंद के मुण्डकोशियां(तहसील आमेट) में हैl राजस्थान से नाता रखने वाले रणजीतसिंह बीएससी में अध्ययनरत हैंl कविता,ग़ज़ल,गीत,कहानी,दोहे तथा कुण्डलिया रचते हैंl विविध पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl आप समाजसेवा के लिए गैर सरकारी संगठन से भी जुड़े हुए हैंl लेखन का उद्देश्य-आमजन तक अपना संदेश पहुंचाना और समाज हित है।