रचनात्मकता,खत्म हुई शायद,
नकलों का जहाँ,बोलबाला है।
झूठे लोगों की,जय-जयकार,
सच्चे का मुँह यहाँ काला है।
पंगु जहाँ,चढ़ने लगे पहाड़,
सज्जन के,मुहँ पर ताला है।
जहाँ बैठे भोले,बने सियार
समझो,कुछ गड़बड़ झाला है।
जहाँ जीते, हारे बैठे हैं,
हारों के गले,विजयमाला है।
समझ की बहती,नदी नहीं,
समझो,अज्ञान का नाला है।
जहाँ छदम्,प्रसिद्धि पाने को,
बुना बहुत,महीन एक जाला है।
रुको मत ‘उपद्रवी’,बढ़ जाओ,
षड़यंत्र,बहुत ही आला है।
# शशांक दुबे,छिंदवाड़ा
लेखक परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश) में पदस्थ हैं| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय हैं |