बिजलियाँ

4 0
Read Time2 Minute, 53 Second

ramnath

कब कहाँ किसी की भी अर्जियाँ समझती हैं,
बिजलियाँ गिराना बस बिजलियाँ समझती हैं।

गर पकड़ में आई तो पंख नोचे जाएंगे,
बाग़ की हकीकत सब तितलियाँ समझती हैं।

पहले दाने डालेगा फिर हमें फँसाएगा,
चाल यह मछेरे की मछलियाँ समझती हैं।

फ़्लैट कल्चर आया है जब से अपने शहरों में,
रोशनी की कीमत सब खिड़कियाँ समझती हैं।

चल पड़ेंगे बुलडोजर छातियों पे इनकी भी,
बिल्डरों की नीयत को झुग्गियाँ समझती हैं।

वो उमंगें नाज़ुक-सी चैट वाले क्या जाने,
प्यार वाली जो बातें चिट्ठियाँ समझती हैंll

#रामनाथ यादव ‘बेख़बर'

परिचय: रामनाथ यादव का साहित्यिक उपनाम-`बेख़बर` हैl आप पेशे से हिन्दी के अध्यापक हैंl आपको कवि,गीतकार, कहानीकार और ग़ज़लकार के रूप में जाना जाता हैl आपकी जन्मतिथि-८ नवम्बर १९७८ और जन्म स्थान-चापदानी, हुगली(पश्चिम बंगाल) हैl शिक्षा-एम.ए.(हिन्दी) तथा बी.एड. होकर कार्यक्षेत्र-हिन्दी के अध्यापक(काशीपुर)हैंl आपका शहर कोलकाता(राज्य-पश्चिम बंगाल) है,जबकि वर्तमान निवास बाँस बागान,चापदानी और स्थाई निवास सिताब दियारा जिला-छपरा (बिहार) हैl सामाजिक क्षेत्र एवं गतिविधि में आप साहित्यिक संस्था-सृजन मंच और हिन्दी साहित्य शलभ से जुड़े हैंl मंच संचालक होने के साथ ही अकादमी के जरिए प्रतियोगी परीक्षा के लिए लम्बे समय सेनिःशुल्क मार्गदर्शन मुहैया करा रहे हैं। आपके खाते में प्रकाशन-मुश्किल का हल निकलेगा(ग़ज़ल संग्रह),फूलों की चुभन(प्रेम काव्य) आदि है तो विविध पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हैं। सम्मान के रूप में कता और मुक्तक सम्मान,शिल्प सम्मान तथा ब्रजलोक सम्मान ख़ास हैl उपलब्धि यह है कि,आपने स्थानीय टी.वी. पर भी काव्य पाठ किया है। आपके लेखन का उद्देश्य-मानवीय मूल्यों का प्रचार-प्रसार करना,समाज को सही दिशा देना और देशप्रेम की भावना जागृत करने के साथ ही अपनी सभ्यता,संस्कृति की गौरव की रक्षा करना तथा महत्व को रेखांकित करना है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

बदलता वक्त हूँ

Mon Sep 4 , 2017
बदलता वक्त हूँ, जाने मेरा अंजाम क्या होगा, सुनाई दे रहे नामों में मेरा नाम क्या होगा ? यहां बिकती सभी चीजें हैं जिनका मोल लाखों में, बना अनमोल फिरता हूँ तो मेरा दाम क्या होगा ? निकल पड़ता हूँ, नदियों में समंदर भी मिले तो क्या, अभी जो है […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।