शालू के दिल में विराट के लिए अथाह प्रेम था, इसलिए शायद विराट के साथ उसने न जाने क्या-क्या सपने देख लिए? किन्तु जब अंधप्रेम का भूत उतरा,तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
आज वह अपनी की गई गलती के लिए बेहद शर्मिंदा थी। आज उसकी अाँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। आज उसे माँ-बाप के मायके की बहुत याद आ रही थी।
माँ-बाप ने उसकी हर बात मानी। उसे कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी। माँ उसकी शादी एक इंजीनियर से कराने की जिद पर अड़ी थी। पिताजी से कह रही थी कि,-देखना आप वहाँ मेरी बेटी राज करेगी। सारे रिश्तेदार,मुहल्ले वाले देखते रह जाएंगे। अपनी बेटी की शादी इतनी धूमधाम से करूंगी।
पर मैंने तो मन-ही-मन विराट को जीवनसाथी बनाने की ठान ली थी,जो चाय की दुकान चलाया करता था।
आखिर कौन दुश्मन माँ-बाप होंगे जो अपनी पढ़ी-लिखी, सुंदर,सुशील बेटी को चायवाले के साथ ब्याह देंगे।
यही सोचकर मैंने विराट के साथ भागकर शादी की। उस दिन से मेरे माता-पिता को मेरी सूरत से भी नफरत हो गई। उन्होंने आज तक मुझसे मेरा हाल तक नहीं पूछा। यहाँ तक कि,विराट की मौत पर भी वो मुझसे मिलने नहीं आए।
विराट के साथ शादी करके मुझे समझ आया कि, सपनों और हकीकत में जमीन-आसमान का फासला होता है। एक-एक करके मेरे सारे सपने जमींदोज होते रहे। आर्थिक तंगी ने हम दोनों को तोड़कर रख दिया था। ससुराल और मायका दोनों पक्षों की नाराजगी के कारण हमें किसी से कभी कोई मदद नहीं मिली। अब तीन बच्चों का खर्च उठाने में विराट को मुश्किल हो रही थी। परेशानियों के चलते रोज विराट के साथ झगड़े होने लगे। और एक दिन अचानक विराट की `हृदयाघात` से मौत हो गई।
`काश! मैं उस समय भावनाओं में बहकर घर से न भागती। बैठकर अपने माँ-बाप से अपने मन की बात कहती तो शायद वो आज मेरे साथ होते। मेरे माता-पिता विराट के माँ-बाप से मिलकर समस्या का समाधान अवश्य निकाल लेते। आज मेरे बच्चों का भविष्य सुरक्षित होता। उस समय मैं स्वार्थ में इतनी अंधी हो चुकी थी कि,मुझे वही माँ-बाप जिन्होंने मेरी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश की,अपने दुश्मन लगने लगे थे।`
किंतु अब पछताए क्या होत…l
परिचय : श्रीमती सुधा कनौजे मध्यप्रदेश के दमोह में न्यू हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी (विवेकानंद नगर) में रहती हैंl श्रीमती कनौजे दमोह के जिला शिक्षा केन्द्र में एपीसी(जेण्डर) हैंl
सबक देती कहानी.. उम्दा.. नयी पीढ़ी को समझने की विशेष जरुरत है