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आधी रात सन्नाटों की नीरवता में,
व्याकुलता जब बढ़ने लगी
दिल में फिर खलबली-सी,
मचने लगी
दिल की किताब के चंद पन्ने,
पलट गए लम्हों की ओर
चंद किस्से बचपन के
हंस पड़े किलकारी मार।
माँ के आँचल बाप की ऊँगली,
दादी-नानी की कहानी
चाचा की पीठ बुआ ढीठ,
सबसे निकल जब गलियों
के गलियारे मित्रों के जमघट।
लुका-छिपी, गुल्ली डण्डा,
कंचों के रंगीले खेल
सतोलिया या मारा-मारी,
वो खेल-खेल में
रुठना मनाना बारी आने पर
दाम की,वो झूठे मौके तलाश
घर भागना,सच बहुत याद आए।
फिर इक पन्ने में जब,
सूखा गुलाब औ’ महक
से मेरा तन-मन सिहर गया,
पलकों की कोर भीग गई
हृदय की वीणा झंकृत हुई,
मन आँखों में वो परी चेहरा
नुक्कड़ के मकां की खिड़की
से पर्दे की ओट से छिपकर
तकता नज़र आया।
इक सफा मोती की बूंदन,
से सज्जित खुशबुओं में
लिपटा नज़र आया,
दुनिया की नज़र औ’ अपनों
की रुसवाई से जिसे छुपाया था।
वो लम्हा भी याद आया,
जब गली के मोड़ पर
डोली सजी थी इक ओर
इक ओर हम लुटे से
दिल के टुकड़े हाथों में
लिए हालात से पिटे थे।
आज भी हम वहीं खड़े हैं,
वही मंजर है आखों में
बस वक्त का पहिया चलता
-चलता उम्र के पन्ने पलट रहा॥
#डॉ. नीलम
परिचय: राजस्थान राज्य के उदयपुर में डॉ. नीलम रहती हैं। ७ दिसम्बर १९५८ आपकी जन्म तारीख तथा जन्म स्थान उदयपुर (राजस्थान)ही है। हिन्दी में आपने पी-एच.डी. करके अजमेर शिक्षा विभाग को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक रुप से भा.वि.परिषद में सक्रिय और अध्यक्ष पद का दायित्व भार निभा रही हैं। आपकी विधा-अतुकांत कविता, अकविता, आशुकाव्य आदि है।
आपके अनुसार जब मन के भाव अक्षरों के मोती बन जाते हैं,तब शब्द-शब्द बना धड़कनों की डोर में पिरोना ही लिखने का उद्देश्य है।
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Mon Aug 28 , 2017
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