एक पहल करनी होगी गौरेया को बचाने के लिए,क्योंकि गौरेया कम देखने को मिलती है। यह आए दिन विलुप्त होती जा रही है। सर्वप्रथम हमें बाग-बगीचों को बढ़ाना होगा,पीपल,आम और बरगद के पेड़ लगाने होंगे तथा विलुप्त हो रही इस पक्षी की नस्ल को बचाने के लिए एकसाथ कार्य करना होगा। यह मत सोचो कि सब करेंगे,तब हम करेंगे। आप करते रहिए,क्योंकि सत्य के पीछे काफिला होता है। चिड़ियाघरों में भी आजकल चिड़िया की चहचहाहट गुम हो रही है,इसे बचाना होगा। गर्मी के दिनों में घर के छत के ऊपर पानी और अन्न रखें,जिससे चिड़िया को भूख-प्यास नहीं रहेगी और विलुप्त होने से भी बचेगी। आजादी सभी के लिए है,आजाद रहना सभी को अच्छा लगता है,इसलिए चिड़िया को कैद करके घर में न रखें।
बहुत सारे अभ्यारणों में आए दिन पक्षियों की कमी हो रही है,इसलिए एकजुटता से पर्यावरण को बचाना होगा। समाचारों और जागरूकता के माध्यम से सभी को दिशा-निर्देश देने होंगे कि,पक्षी को मारे नहीं,उसे जीने दें,क्योँकि आजादी सभी का हक है।
‘मुक्त आसमान में उड़ान बाकी है,
हवा के साथ उनका पैगाम बाकी है।
उन्हें शांति से आजाद रहने दो,
उनके नाम भी आजादी का पैगाम है।’
अगर आप पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करते हैं, तो वह दिन दूर नहीं,जब आपके साथ खिलवाड़ होगा और वक़्त का पहिया धीमा पड़ जाएगा,तब विनाश निश्चित हो जाएगा।
छोटी-सी बात है-एक दिन पिंजरे में बंद चिड़िया से पूछा-कैसा लगता है ?
चिड़िया बेबस होकर बोली-
दम घुटता है बेजुबान हूं,इसलिए मेरा फायदा उठा रहे हैं। काश ये पिंजरे नहीं बने होते तो,मैं भी मुक्त आकाश में उड़ पाती। मेरी चोंच सूज गई है पिंजरे को काट-काटकर,पर आजाद नहीं हूं।आखिर अब मुझे यहीं बंधुआ रहना है।
चिड़ियों की दशा की तरह आज हमारे समाज में बाल मजदूरी भी बड़ा नासूर है,जो देश की सबसे बड़ी समस्या है। गौरेया और बच्चों को बचाने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है।