अक्षर की साधना के ऋषि थे डॉ. शरद पगारे- सत्तन जी
इन्दौर। निमाड़ की माटी का लाल नर्मदा के जल को हृदय में आत्मसात करते हुए साहित्य और अक्षर की साधना डॉ. शरद पगारे ने की। वो अपनी भाषा, संस्कृति और संस्कारों के प्रति भी समर्पित रहे। ऐसे व्यक्ति का साहित्य क्षेत्र से चले जाना अपूरणीय क्षति है। वह देह से चले गये, पर अक्षर के लोक में सदैव हमारे बीच में रहेंगे इन भावपूर्ण शब्दों के साथ वरिष्ठ साहित्यकार सत्यनारायण सत्तन ने डॉ. शरद पगारे को श्रद्धांजलि अर्पित की।
श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि सभा में प्रचार मंत्री हरेराम वाजपेयी ने डॉ. शरद पगारे के जीवन उनके लेखन और उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार के संदर्भ में बताया वो हमारे बीच के पहले व्यक्ति थे जिन्हें बिरला फाउंडेशन व्यास सम्मान से विभूषित किया गया। उनकी कृतियों में गुलारा बेगम, बेगम जैनाबादी, पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी, गन्धर्व सेन तथा कहानी संग्रहों के बारे में बताया। समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर ने कहा कि 93वें वर्ष की अवस्था में वो चलते-फिरते बिना कष्ट सहे और किसी को कष्ट दिये इस संसार से विदा हो गये। साहित्य मंत्री डॉ. पद्मा सिंह ने कहा कि वो साहित्यकार के रुप में सदैव हमारे बीच में जीवंत रहेंगे। इस अवसर पर मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’, विचार प्रवाह मंच के अध्यक्ष मुकेश तिवारी, डॉ. अखिलेश राव एवं म.प्र. लेखक संघ इंदौर इकाई की ओर से प्रदीप नवीन, हिंदी परिवार इंदौर के सचिव संतोष मोहंती ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर साहित्यकार रामचंद्र अवस्थी, चन्द्रभान भारद्वाज, नागेश व्यास, समिति के शोधमंत्री डॉ. पुष्यपेंद्र दुबे शरद शर्मा, दिनेश तिवारी दिनेश पाठक के अलावा समिति परिवार श्री घनश्याम यादव, राजेश शर्मा, अनिल भोजे, हेमेन्द्र मोदी, छोटेलाल भारती, कमलेश पाण्डे, संदीप पालीवाल आदि ने एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि देते हुए पुष्पांजलि अर्पित की।