हिन्दी: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान

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विश्व हिन्दी दिवस विशेष

“माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी
हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी”

हिंदी भाषा के बारे में कवि ने उपर्युक्त पंक्तियों में सटीक ही कहा है कि हिंदी हमारी भारत माता के मस्तक पर शृंगार की तरह सुशोभित होती है। हमारे देश की आन, बान, शान और हमारी अस्मिता की पहचान हिंदी से ही है। हिंदी ही वह भाषा है जो विविधतापूर्ण देश को एक सूत्र में संजोने का काम करती है। स्वतंत्रता के समय भी देशवासियों को एकजुट करने और उनमें जोश भरने के लिए कवियों और लेखकों ने हिंदी को ही सशक्त माध्यम बनाया था। हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ है। जिस तरह से अलग-अलग फूलों को संजोकर एक धागा एक सुंदर–सी माला का निर्माण करता है, इसी तरह हिंदी भाषा देश के निवासियों को एक सूत्र में पिरोकर एकजुट करने का काम करती है।
आज 10 जनवरी का दिन पूरी तरह से हिंदी को समर्पित दिवस है। प्रतिवर्ष 10 जनवरी को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस को धूमधाम से मनाया जाता है। अंग्रेज़ी और मंदारिन के बाद हिंदी विश्व स्तर पर सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में तीसरे नंबर पर आती है। वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के अनुसार पूरी दुनिया में 60 करोड़ से अधिक लोग हिंदी भाषा को बोलते और समझते हैं। भारत देश के अलावा मॉरीशस, फ़िज़ी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो तथा नेपाल में मैं हिंदी भाषा बोलने और समझने वाले लोग बहुतायत में पाए जाते हैं। हिंदी भाषा भारत और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में करोड़ों लोगों को जोड़ने के लिए एक पुल के रूप में काम करती है। हिंदी न केवल भारत सरकार की आधिकारिक भाषा है, बल्कि महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व भी रखती है। हिंदी ने भारत की अलग पहचान बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में सबसे पहले 10 जनवरी 1949 को हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया था इसलिए इस दिन का विशेष महत्त्व है। इसके बाद 1975 में पहली बार विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन नागपुर महाराष्ट्र में किया गया। इसमें 30 देश के 122 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। यही वह साल था जब भारत के साथ ही मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम, त्रिनिदाद और टोबैगो तथा संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विभिन्न देशों में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस तरह से हिंदी को विश्व पटल पर पहचान मिलने की शुरुआत हुई थी। इस सम्मेलन का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देना था। वैश्विक मंच पर सम्मेलन की सफलता से विश्व हिंदी दिवस की स्थापना हुई, जिससे दुनिया भर में हिंदी प्रेमियों को भाषा का जश्न मनाने और प्रचार करने के लिए एक मंच मिला।
भारत में 2006 से नियमित तौर पर प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जा रहा है। इसी क्रम में वर्ष 2018 में मॉरीशस के पोर्ट लुइस में विश्व हिंदी सचिवालय भवन का उद्घाटन किया गया। इसका उद्देश्य हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार को बढ़ावा देना है।
भारत में राष्ट्रीय हिंदी दिवस प्रतिवर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है क्योंकि 14 सितंबर को ही साल 1949 में संविधान सभा द्वारा हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था। आधिकारिक रूप से पहली बार राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था। काका कालेलकर, मैथिली शरण गुप्त, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविंददास ने हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने के क्रम में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भारत के संविधान में हिन्दी आठवीं अनुसूची के अंतर्गत शामिल भाषा भी है। इसके साथ ही संविधान का अनुच्छेद 351 हिंदी भाषा के विकास से संबंधित है।
वर्ष 1960 में भारत सरकार द्वारा शिक्षा मंत्रालय के अधीन केंद्रीय हिंदी निदेशालय की स्थापना की गई थी।
हिंदी भाषा को अपना नाम फ़ारसी शब्द ‘हिंद’ से प्राप्त हुआ है, जिसका अर्थ है ‘सिंधु नदी की भूमि’। 11वीं शताब्दी की शुरुआत में तुर्की के आक्रमणकारियों ने सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र की भाषा को हिंदी यानी ‘सिंधु नदी की भूमि की भाषा’ नाम दिया। आधुनिक देवनागरी लिपि 11वीं शताब्दी में अस्तित्व में आई।
भारत की सीमाओं से परे हिंदी ने संयुक्त राष्ट्र सहित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इसे संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो वैश्विक संचार और कूटनीति में इसके महत्त्व को दर्शाता है।
आज के डिजिटल युग में हिंदी की प्रासंगिकता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विभिन्न प्रकार के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, वेबसाइट्स, यूट्यूब के माध्यम से हिंदी भाषा अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच रही है। क्योंकि भारत की बहुसंख्यक आबादी हिंदी भाषा में सहज महसूस करती है इसलिए डिजिटल कंटेंट क्रिएटर भी हिंदी का उपयोग करके अपनी रचनात्मकता को नए आयाम दे रहे हैं। इस तरह से हिंदी भाषा एक तरह से नए रोज़गारों के सृजन में भी उल्लेखनीय योगदान दे रही है। हिंदी फ़िल्मों, संगीत और साहित्य ने दुनिया भर में काफ़ी लोकप्रियता हासिल की है, जिससे भाषा की वैश्विक अपील में योगदान हुआ है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा मिला है।
हिंदी भाषा के राह में आने वाली चुनौतियों में सबसे प्रमुख है दूसरी भाषाओं का बढ़ता दखल। इसके अलावा प्रोफ़ेशनल और तकनीकी कोर्सेज में हिंदी भाषा में मानकीकृत पाठ्य सामग्री की कमी और हिंदी भाषा को लेकर हीन भावना का होना हिंदी की प्रगति में बाधक हैं। विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम अधिक से अधिक हिंदी भाषा का प्रयोग करें। विश्व हिंदी दिवस सिर्फ़ एक भाषा का उत्सव नहीं है, यह सांस्कृतिक समृद्धि, भाषाई विविधता और सीमाओं के पार लोगों को जोड़ने की भाषा की शक्ति का उत्सव है। जैसा कि हम इस दिन को मनाते हैं, आइए हम हिंदी के वैश्विक प्रभाव को पहचानें और एकता को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका को रेखांकित करें। महान कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी कहा था,
’निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।’

#भावना शर्मा
दिल्ली
सह संपादक, मातृभाषा डॉट कॉम

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।