कहानी- बूढ़े होते किस्से

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अब तो राघव गिनती भी भूल चुका था कि कितनी पीढ़ियों से आम के ये बाग़ उनके परिवार के पास थे।
गाँव से बाहर पच्चीस बीघे का बाग़, अतिरिक्त आमदनी का ज़रिया तो था ही, पीढ़ियों से खानदान के बच्चों के बचपन का साक्षी, सखा, अमूल्य यादों का ख़ज़ाना भी था।
पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चे बड़ों से बाग़ के किस्से आम की मिठास के साथ सुनते रहे और उसी मिठास से अगली पीढ़ी को सुनाने के लिए आत्मसात भी करते रहे।
सावन में झूले झूलने हों, मित्रो के साथ कच्ची अमिया खाने का मन हो, आम की तो बात ही क्या…केसर, हापुस, बादाम, देसी आमों के अनेक प्रकार…हर गर्मी की छुट्टी में परिवार के बच्चे जैसे बगीचे में बने घर में रहने आ जाते।
बगीचे के शुद्ध वातावरण, ठंडी आबोहवा में न गर्मी सताती, न समय का पता चलता।
खेल–खेल में समय भी बीतता, सारे बच्चे पेड़ों की देखभाल करना भी सीख जाते और प्रकृति से जुड़ाव भी बढ़ता जाता।
साथ ही, पर्यावरण संरक्षण का महत्त्व भी समझ आता जाता।
आज सुबह से घर में घमासान मचा था। राघव अपना बाग़, नई खुल रही औद्योगिक इकाई को बेचना चाहता था, पर पिताजी और बाबा उसके इस निर्णय के सख्त ख़िलाफ़ थे।
उनके लिए यह बाग़ सिर्फ़ बाग़ न होकर धरोहर था, न केवल परिवार की, वरन इस
गाँव की।
वे सचेत थे कि पेडों से ही जीवन है, दृष्टिगोचर हो रहे फलों के अतिरिक्त शुद्ध हवा, हरियाली, जल संग्रहण जो इन पेड़ों के माध्यम से उन्हें मिलती थी, इसे वो लगातार अपनी अगली पीढ़ियों को हस्तांतरित करते रहना चाहते थे।
सुबह से दोपहर होने की थी, राघव का किशोर बेटा सूरज अभी स्कूल से लौटा था।
घर के माहौल को भांपते हुए सूरज, धीमे–धीमे राघव के पास जाकर बोला,
“पिताजी! हम अपना बाग़ क्यों बेच रहे हैं?”
पहले तो राघव ने बच्चे को जवाब देना उचित नहीं समझा, पर कुछ दूर बैठे पिताजी और बाबा को देख उनको सुनाने की गरज से बोला,
“पैसे के लिए नहीं बेच रहा यह बाग़..। तुम्हारे लिए बेच रहा हूं।
ताकि तुम्हारे ऊपर इसकी साज संभाल का भार न रहे और तुम मुक्त होकर शहर में अपना करियर बना सको।”
“पर पिताजी, कुछ दिन पहले ही आपने मुझे मेरी किताब से पर्यावरण पर पाठ पढ़ाया था और कहा था कि हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। फिर मेरा करियर पेड़ों की बलि की कीमत तो नहीं मांगता।”
“बाबा, दादा, आपसे सुने किस्से, क्या हमारे आगे आने वाले बच्चों के लिए विगत की बात होगी, उनका परिचय क्या हमारी विरासत से नहीं होगा? मैं तो गर्व से अपने स्कूल में बगीचे के किस्से और उसके माध्यम से अपने पर्यावरण के प्रति योगदान की बात कहता हूं। मेरी बातें सुनकर मेरे कई मित्रों के परिवारजन भी अपने खेतों के मेढ़ पर घने छायादार पेड़ों(कलम) को बो रहे हैं।
अब जब हम ही अपना बागान बेच देंगे, तो यह अच्छी बात तो नहीं होगी पिताजी।”
फिर कुछ रुककर रूआंसा होता हुआ बोला,
“मैं ख़ुद भी पर्यावरण व उन पेड़ों का अपराधी बन जाऊंगा।”
राघव कुछ सोचते हुए,
“ठीक कहते हो। चलो बेटा, तुम मेरे साथ चलो, हम दूसरे किसानों को भी उनके बागान नहीं बेचने के लिए मनाते हैं। फिर पेड़ लगाना, बचाना ही एक मुद्दा नहीं, पानी का अपव्यय रोककर, संग्रहित अधिक करना, प्रदूषण रोकना इन पर भी हम मिलकर काम करेंगे और सभी को प्रोत्साहित करेंगे।वाकई तुम बच्चों का भविष्य इन बागानों की बलि से नहीं, बल्कि इन्हें सुरक्षित रख कर उज्ज्वल होगा।
जब हम ही पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए कदम नहीं उठाएँगे तो दूसरों से इसकी अपेक्षा करना व्यर्थ है।”
पीछे बाबा और दादा दोनो मुस्करा रहे थे।
किस्सों की जुगाली अभी बाकी थी और आने वाली कई पीढ़ियों तक कायम रहने वाली थी।

नीलम तोलानी “नीर”

इंदौर, मध्यप्रदेश

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