दिन था बैसाखी का चहूं ओर ख़ुशियाँ थीं फैली,
वह क्रूर अत्याचारियों ने बच्चों तक की जानें ले लीं।
जलियांवाला कांड है बलिदान वीरों की कहानी,
यह वह मंज़र था, जहाँ दिलों में अमर्ष और आँखों में पानी।
भीगे हुए थे रक्त में पल्लव और पुष्पों का था खौफ़ मंज़र,
छलनी करते हैं सीना जैसे खोपा हो खंजर।
बलिदानों की कहानी है 13 अप्रैल का यह दिन,
आज़ादी हमारी अधूरी थी इन सभी के बिन।
ब्रिटिश शासन की क्रूरता की देता यह गवाही,
जिसने मचा दी थी पावन भूमि अमृतसर पर तबाही।
वह दिन था काला और रात भी थी काली,
भारत माँ की खातिर वीरों ने सीनों पर गोलियाँ खालीं।
हर देशद्रोही और अत्याचारी से लड़ना होगा,
फिर कोई फ़िरंगी जलियां कांड दोहरा न सकेगा।
देना होगा सबक, सही सबब जान,
तभी सही मायने में बलिदानियों का होगा सम्मान।
#संध्या रामप्रसाद पाण्डेय, अलीराजपुर, मध्यप्रदेश