हे कविवर !
रुको न तुम, झुको न तुम
न हो निराश,
करो नित सत साहित्य सृजन
सदा रहो शारदे तप लीन ।
तुम्हें करना है चमत्कार
दिखाना है समाज को आईना
ताकि बदल जाये जग की दिशा- दिशा
तुम्हें लड़ना है अन्याय, अधर्म से
मिटाना है शोषण ।
हे कविवर !
काम तुम्हारा नहीं व्यर्थ का
सदियों से हर युग में,
तुमने समाज का उत्थान किया
मानव को मानवता का ज्ञान दिया ।
गढ़ शब्दों से कविता को जन्म दिया
जन-जन की पीड़ा को मरहम दिया
स्वयं अभावों में रहकर
संसार को दौलतमंद किया
परोपकार भरा कार्य किया ।
हे कविवर !
बेशक न करे कोई गुणगान
तुम थे महान, तुम हो महान, तुम रहोगे महान…।
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगरा, उत्तर प्रदेश