कोरोना महामारी से बचाव हेतु शासन ने टीकाकरण अनिवार्य कर दिया है। राशन से लेकर अन्य सुविधायें पाने के लिए भी टीकाकरण का प्रमाण पत्र आवश्यक है। जागरूकता लाने के नाम पर भारी धनराशि खर्च की जा रही है। सुविधाओं से वंचित होने का खतरा और कोरोना के बढते मरीजों की संख्या के डर से टीकाकरण केन्द्रों पर सुबह से ही लम्बी लम्बी लाइनें लगने लगीं है। मगर कर्मचारियों की लापरवाही और टीके की कमी ने अफरातफरी का माहौल बना दिया है। हजारों लोगों की लाइन में केवल सैकडों लोगों को ही टीका लग पा रहा है। बाकी लोग मायूस को कर लौट रहे हैं। प्रभावशाली लोगों को बिना लाइन के ही टीके लग जाते हैं। ऐसे में आये दिन झगडे हो रहे हैं। एक ओर टीकों की किल्लत और दूसरी ओर सिफारिशी फोन लगवाने वालों की निरंतर बढती संख्या ने अभियान की व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह अंकित कर दिये हैं। केन्द्रों पर डियूटी करने के लिए निर्धारित कर्मचारी भी अपनी मनमर्जी से पहुंचते हैं। इस लेटलतीफी से भी केन्द्रों पर सुबह से इंतजार कर रहे लोगों में आक्रोश पनपने लगता है। उत्तरदायी अधिकारियों व्दारा आम आवाम का फोन न उठाना, तो एक आम बात है। एप के माध्यम से स्लाट बुक करवाने वालों के लिए केन्द्रों पर कोई अतिरिक्त काउण्टर नहीं होने से उन्हें भी बिना स्लाट बुक करने वालों की भीड में ही जद्दोजेहद करना पडती है। देश के अधिकांश केन्द्रों में ऐसी ही स्थिति है। साइबर युग में स्वयं को अग्रणीय दिखाने के लिए टीकाकरण हेतु एप लांच किया गया है परन्तु केन्द्रों पर एप का औचित्य हाशिये पर पहुंच गया है। इसके अलावा एक बेहद खतरनाक स्थिति की सूचनायें मिल रहीं है जिसमें अनेक गांवों के कोटेदारों, पंचायत सचिवों और स्वास्थकर्मियों को संयुक्त रूप से आरोपों के घेरे में लिया जा रहा है। जब से नि:शुल्क राशन सहित अन्य सुविधाओं के लिए टीकाकरण प्रमाणपत्र अनिवार्य कर दिया गया है, तब से राशन वितरण करने और अन्य सुविधायें उपलब्ध कराने वालों की अतिरिक्त आय पर विराम लग गया है। गांव के ज्यादातर लोग टीका नहीं लगवाना चाहते है और राशन सहित सभी सुुविधायें लेना चाहते है। ऐसे में अनेक कोटेदारों, पंचायत सचिवों तथा स्वास्थकर्मियों नेे एक सुनिश्चित योजना बनाकर आंकडों की बाजीगरी दिखाना शुरू कर दी। इसके पीछे अनेक कारण हैं। कोटोदारों की अतिरिक्त आय पर विराम लग गया, पंचायत सचिवों और स्वास्थकर्मियों पर तेजी से टीकाकरण करने का आधिकारिक दवाव है। दूसरी ओर गांवों में लोग टीका लगवाने के लिए तैयार हो ही नहीं रहे हैं। लोगों के इस उपेक्षात्मक रवैये के पीछे संचार माध्यमों से टीके के प्रतिकूल प्रभावों का प्रचार काम कर रहा है। ऐसे में आरोप है कि अनेक कोटेदारों, पंचायत सचिवों और स्वस्थकर्मियों ने फर्जी आंकडे तैयार करने हेतु संयुक्त रूप से एक योजना बनाई। कोटेदार ने गांव के लोगों को मोबाइल सहित पंचायत भवन में बुला, सचिव और स्वास्थकर्मी ने हितग्राही के मोबाइल सहित अन्य दस्तावेजों से औपचारिकतायें पूरी की और संयुक्त रूप से एक राय होकर टीका लगाये बिना ही टीकाकरण के आंकडे तैयार कर लिये गये। इस पूरी प्रक्रिया में बचे टीकों को निजी अस्पतालों में बेचना की भी चर्चा भी सामने आ रही है क्यों कि एडवांस टीकाकरण हेतु अतिरक्ति डोज लगवाने पर भी संचार माध्यमों पर खासा जोर दिया जा रहा है। ऐसे में यदि फर्जी टीकाकरण प्रमाणपत्र वाले व्यक्ति की मौत हो जाती है तो टीका की प्रमाणिकता पर हंगामा मचाने वाले गला फाडने लगते है। इस तरह की निरंतर मिलने वाली सूचनाओं से चिन्ता के बादल मडराने लगते हैं। कोरोना के मिलने वाले मरीजों की संख्या में इजाफा होने के पीछे यह भी एक महात्वपूर्ण कारक हो सकता है परन्तु अभी तक ऐसी जांच पध्दति विकसित नहीं हुई है जो यह बता सके कि अमुक व्यक्ति को वास्तव में टीका लगा है या नहीं। फर्जी टीकाकरण जैसे कारकों के पीछे उत्तरदायी लोगों की मानसिकता है जो शासकीय दायित्वों की कागजी पूर्ति हेतु नित नये हथकंडे अपनातेे है। देश के प्रशासनिक व्यवस्था में लगे लोगों की मानसिकता बदले बिना कोई भी योजना, अभियान या कार्यक्रम धरातल पर सफल नहीं हो सकता। कागजी आंकडों से तो शतप्रतिशत सफलता ही अंकित होती रही है और हो भी रही है। इसी कारण आम आवाम भी सरकार को एक अलग दृष्टिकोण से देखती है। वर्तमान समय में सरकार का स्थाई कर्मचारी या अधिकारी होना, सुरक्षित भविष्य की गारंटी है भले ही दायित्वों की पूर्ति की जाये या न की जाये। कर्तव्यों को निर्वहन हो या न हो। देश में किसी को भी सरकारी नौकरी से निष्कासित कर पाना सहज नहीं है। कोर्ट, अपील, मानवाधिकार, अल्पसंख्यक आयोग, महिला आयोग जैसी अनेक संस्थाओं की पेचैंदगी भरी प्रक्रिया लागू होने से सरकारी सेवक स्वयं को पूरी तरह से सुरक्षित महसूस करता है। कार्यकाल के दौरान मनमाने आचरण करने वाले सेवा निवृत्ति के बाद भी एक मुस्त भारी धनराशि और जीवन भर निरंतर पेंशन राशि के हकदार होते हैं। जब कि प्राइवेट नौकरी, व्यापार या खेती करने वाले जीवन के अंतिम समय तक जीवकोपार्जन के लिए संर्घष करते रहते हैं, भले ही शरीर में सामर्थ हो या नहो। वर्तमान समय में सरकारी नौकरी किसी भगवान के वरदान से कम नहीं है। यही कारण है कि दूर दराज के गांवों में टीकाकरण के स्थल निरीक्षण हेतु नियुक्त अधिकारी अपने वातानुकूलित कमरों में बैठकर ही धरातली कर्मचारियों की आख्या पर प्रमाणिकता की मुहर लगा देते हैं। कागजी आंकडे तैयार करने में माहिर प्रशासनिक अधिकारी दैनिक आख्या में अपने-अपने क्षेत्र की कीर्तिमानी उपलब्धियों पर एक दूसरे की पीठ ठोक रहे हैं। ऐसे में कोरोना के बढ रहे मरीजों के पीछे फर्जी टीकाकरण की संभावना बलवती हो रही हैं। इस यक्ष प्रश्न को सुलझाये बिना वास्तविक स्थिति तक पहुंचना बेहद कठिन होगा। इस सप्ताह बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
डा. रवीन्द्र अरजरिया