कलम की सुगंध विश्व साहित्य नारी कोष के तत्वावधान में वट सावित्री अमावस्या के शुभ अवसर पर काव्य सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में
संस्थापक संजय कौशिक विज्ञात, अध्यक्ष अनिता भारद्वाज अर्णव ,मुख्य अतिथि मंशा शुक्ला जी ,विशिष्ट अतिथि हर्षा देवांगन की उपस्थिति में कार्यक्रम का सुंदर आयोजन किया गया।
वट सावित्री व्रत पर विभिन्न विधाओं में काव्य की सरस धारा फूट पड़ी।
अनिता मंदिलवार सपना ने दोहा छंद में कहा सीखो बरगद पेड़ से साथ अटल रहे आप।अपने रीति रिवाज में दिखती इनकी छाप।
वीरांगना श्रीवास्तव ने इस अवसर पर गाया कल कल नदिया बहे मन में हलचल मचे,याद आई पिया की तो आँसू झरे।
अर्चना पाठक निरंतर ने वट सावित्री कथा को दोहा छंद में सुनाया
वट पूजन यह खास है,रहे अखंड सुहाग। सावित्री सम पतिव्रता,होता दूर विहाग।
चमेली कुर्रे सुवासिता ने सुंदर दोहा पढ़ा पूजा कर वट वृक्ष के, जोड़ो दोनों हाथ।
माता सवित्री सा वचन, रखो हृदय में साथ।।
गीता दुबे ने कहा राजा अश्वपति की बेटी सावित्री संतान थी। राज ऋषि का अभिमान यह देवी का वरदान थी।
पूनम दुबे ने मधुर स्वर में गाया वट वृक्ष पर भाँवर लेकर करती भरपूर कामना साथ लिए मंगल धागा माँगे सिंदूर हमेशा साधना।
गीतांजलि जी ने सावित्री गौरव गाथा
आल्हा छंद में कहा -भारत की इक सति अनुपम, युग युग जग में जिसका गान।
सावित्री शोभा वसुधा की, सत्यवान भर्ता गुणवान॥
राधा तिवारी राधे गोपाल उत्तराखंड से वट सावित्री पर्व पर,कर लो तुम उपवास।सभी सुहागिन कर रही,है पीपल से आस की प्रस्तुति दी।
डॉ. सीमा अवस्थी ने कहा वृक्षों के सरताज को पूज रहा संसार।सेवा वंदन कामना ,हरा भरा परिवार।आशा उमेश पांडेय ने करती पूजन वट सदा, सुहागिनें हैं जान। सौभाग्य वती कामना माँगे है वरदान जैसे दोहों की सुंदर प्रस्तुति दी।
चंद्रकिरण शर्मा ने कहा करें आराध्य से विनती निभाये सात जन्मों तक । विशिष्ट अतिथि हर्षा देवांगन ने सुंदर रचना दौर चल रहा महामारी का अक्सीजन दर घट रहा अपार।विपदा हर लो प्रभु हमारी लगा दो जीवन नैया पार की प्रस्तुति दी।मुख्य अतिथि मंशा शुक्ला ने तुम ही धूप तुम ही छाया की मधुर प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का सफल संचालन धनेश्वरी सोनी गुल ने किया। आभार प्रदर्शन मंच संचालिका अर्चना पाठक निरंतर ने किया। पटल प्रभारी अनिता मंदिलवार सपना विश्व साहित्य नारी कोष के सफल निर्देशन में यह कार्यक्रम संपन्न हुआ।कलम की सुगंध के संस्थापक गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात की छंद साधना सभी की रचनाओं में परिलक्षित होती दिखाई दी।