अमृत बेला

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रात के तीसरे पहर में
स्वर्णिम अमृतबेला में
नींद के गहरे आगोश में
जब समाया रहता हूं मैं
स्वप्नों का अनूठा संसार
जब रहता मेरे इर्दगिर्द
सतयुग की परिकल्पना
मुझे ले जाती उस पार
जहां रहते है परमात्मा
हां, वही जो आनन्ददाता है
हां, वही जो सुखों के सागर है
हां, वही जो प्रेम के सागर है
वही तो मेरे परमपिता है
वही मेरे गुरु,शिक्षक सखा है
उनका सानिध्य पाकर
जब लौट आता हूं वापस
नींद के गहरे सुख में
तभी मेरे कानों में पड़ता है
कोयल की ‘कूउ कूउ कूउ’
का मधुर कर्णप्रिय गान
लगता है जैसे यह गान सुना
उठा रहे हो मुझे परमात्मा
सवेरे के साढ़े तीन बजे का
यह प्राकृतिक अलार्म
मेरी दिनचर्या को
खुशनुमा बना देता है
परमात्म याद में रहने का
एक स्वर्णिम अवसर देता है।
श्रीगोपाल नारसन
रुड़की,उत्तराखंड

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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