बस करो बस की सियासत को

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बस करो बस की सियासत को,
और न बढ़ाओ इस आफत को।
मजदूर पहले से ही परेशान है,
और न कम करो उसकी हिम्मत को।।

बेबस था पहले ही बेचारा मजदूर,
और न करो तुम उसको मजबूर।
पहले तो उसकी रोजी रोटी छीनी,
अब वह पैदल चलने पर मजबूर।

मजदूर वाकिफ था तुम्हारे कारनामों से,
तुम बदनाम थे रिश्वत खाने में।
तुम्हे आज ही होश क्यो आया,
क्या तुम पड़े थे मयखाने में।।

दिखा रहे मजदूरों को सहानुभूति,
उस पर भी चला रहो हो राजनीति
इससे पहले क्या तुम सोए हुए थे,
क्यो आज हुई तुम्हे यह अनुभूति।

जानता है मजदूर कौन है किसके हित में,
वोटों की राजनीति करते हो अपने हित में।
पहले तो भगाया शहरों से तुमने,
अब भेज रहे गावों को अपने हित में।।

हो रही हैं सियासत रियायत के
नाम पर ,
इसी सियासत के कारण बढ़ी है आफत।
और मत दिखाओ अपनी शराफत को,
और कितना दिखाओगे अपनी गिरावट को।।

अगर तुम्हे मजदूरों का ख्याल होता।
पहले से बसों का इंतजाम होता।
जब देखी मजदूरों की भीड़ भारी,
सर पर तुम्हारे कफन बधा होता।।

लाखो बस देश मै बेकार खड़ी है
किसी की नजर उन पर न पड़ी है
गडी है नजर केवल राजनीति पर,
जबकि देश की मुश्किल घड़ी है।।

ये इंसान नहीं है केवल दारिंदे है,
बसों की आड़ में करते धंधे है।
पूछो इनसे इतनी बसे कहां से आई,
करते है इनकी आड़ मै काली कमाई है।।

अगर बस परमिट मजदूरों के नाम होता,
इतना संग्राम कभी देश में न होता,
बसे मजदूरों की अपनी चलती,
इनको पैदल सड़कों पर चलना न होता।।

आर के रस्तोगी
गुरुग्राम

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