बहुत याद आए ,
बचपन प्यारा।
सुन्दर सलोना ,
समय प्यारा प्यारा।
ना सोने की चिंता।
ना उठने जल्दी ।
ना काम कोई था,
ना कोई भी जल्दी ।
वो गुड्डा गुड़िया की,
शादी निराली।
वो नाचना मस्ती में,
बनके बाराती।
वो गुल्ली डण्डा,
साइकिल चलाना।
वो खो-खो, कबड्डी,
वो नाव बनाना।
वो नदी में नहाना।
पेड़ों पे चढ़ना,
वो कंकड़ खेलना,
मेड़ों पे चलना।
वो यारों से मिलना,
लड़ना झगड़ना।
झट रूठ जाना,
फिर मान जाना।
वो दूध,मलाई,
वो माखन रोटी।
शिकायत करना,
वो झूठी मूठी।
वो ऊँची मचान से,
चिड़ियाँ उड़ाना।
वो खलिहानों में ,
बकरी चराना।
वो रंगीन कम्पट,
चूरन की पुड़िया।
दादी का बुलाना
ओ मेरी गुड़िया।
नानी की कहानी,
वो एक राजा रानी।
आए अँखियों में ,
फिर निंदिया रानी।
वो चूल्हे की रोटी,
बैंगन का भुर्ता,
माँ का बनाया,
वो ढीला कुर्त्ता।
वो माँ का आँचल,
दुलार पिता का।
मिल जाए काश,
वो पल बचपन का।
दुनियाँदारी से,
पीछा छुड़ाऊँ।
एक बार फिर से,
बचपन जी जाऊँ।
स्वरचित
सपना (स. अ.)
जनपद औरैया