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देवता हो या फिर हो मानव
मां रखती है समान ही भाव
ममत्व उसका देवत्व पर भारी
उकमणी की यही थी लाचारी
पुत्र प्रद्युम्न का हरण हुआ
मां रुकमणी का रुदन हुआ
तीनो लोक की ज्ञाता रुकमणी
पुत्र सुरक्षित है जानती रुक्मणी
मां के मन को कौन समझाये
प्रद्युम्न बिना रहा न जाए
शक्ति स्वरूपा भी विलाप करे
मां की ममता विवेक हरे।
#श्रीगोपाल नारसन
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