[मजदूर दिवस (१ मई )पर विशेष ]
उन्हें कोई फर्क नहीं पढ़ता,
रात अमावस की हो काली
या हो पूर्णिमा की उजियारी,
अपने पसीने की लालिमा से
सर्वत्र रोशन किया है उसने,
जहां पहुंचने में रवि की किरण
असहाय हो जाती है।
तन ढँकने को तनिक-सा चिर
ज्यादा दिखाई देता है,
उसका खाली पेट और
मरोड़ खाती अंतड़ियां,
काफी कुछ कह जाती हैं..
फिर भी उसने देखी नहीं है
गरीबी,शर्म,व्याकुलता,
बल्कि सारी उमर जिया है
इन कटु बन्धनों को
किसी अनुबन्ध में बंधकर।
अब तो सिर्फ एक जगह होती है,
उसकी अभिलाषाएं,तमन्नाएं
और आकांक्षाएं पूरी,
जब घुटने और पीठ का दर्द
अपने चरम पर होता है,
जहां वह सपनों की दुनिया में..
दुखों के मदरसों से
कोसों दूर जाकर ,
मन-भर खुशियां बटोर लेता है।।
#कार्तिकेय त्रिपाठी
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।