सब-कुछ बदल जाता है। दिन रात में और रात दिन में बदलते हैं। मौसम चार भागों में बंट जाते हैं। सृष्टि का श्रृंगार है बदलाव। जो परिवर्तनशील है।
जैसे बचपन यौवन में बदलता है और यौवन बुढ़ापे में परिवर्तित हो जाता है। बुढ़ापा जिसे जीवन अभिशाप में बदल जाता है।उसे सम्पूर्ण जीवन या जीवनचक्र भी कहते हैं। यह वह फिल्म है जिसके निर्माता माता-पिता और निर्देशक इश्वर होते हैं। जिसमें सुख और दुख भी प्राकृतिक बदलाव दर्शाता है।
जब जीवनलीला का चित्रण फिल्म उद्योग करता है तो शूटिंग का तौर-तरीका बदलना भी स्वाभाविक है। चूंकि कोरोना विश्व युद्ध ने मानव की सोच बदल दी है। लोगों को ज्ञान हुआ है कि एक सूक्ष्म अदृश्य शत्रु जीव अत्याधिक शक्तिशाली राष्ट्र और उनके द्वारा बनाए अनुबम इत्यादि विफल हो गये हैं। जिनके चित्रण दर्शाने के लिए फिल्मों की शूटिंग का तौर-तरीका बदलना निश्चित है।
इंदु भूषण बाली