कल और आज की परिस्थितियाँ अलग

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कल और आज के परिपेक्ष्य में हम इतना स्पष्ट तौर पर कह सकते हैं कि प्रकृति से दूर होती हमारी जीवन शैली भौतिक सुख को ही सुख समझकर दिन रात प्रकृति का दोहन करता रहा चाहे वह विज्ञान हो अथवा ज्ञान प्रकृति से जिसको जहाँ मिलता गया दिन-रात बस लेता रहा। इस चक्कर में वह भूल गया कि पकृति की मात्रा भी सीमित है।उससे उतना ही लेना चाहिए जितनी की आवश्यकता हो?
पूर्व की संस्कारो में प्रकृति प्रेम का वास था लेकिन आज की शहरी संस्कृति और एकल परिवार ने हमें संस्कार और प्रकृति से दूर किया है।चाहकर भी हम बच्चों को अपने साहित्य और संस्कृति के प्रति रूचि नही जगा पाते आखिर क्यों? क्योंकि बचपन से ही वैसी परिवेश, बड़ो का संपर्क, सामाजिक सभ्यता,संस्कृति, आदि से वे दूर होते है तो उनकी रूचि कैसे होगी।चंद किताबें मोवाइल टीवी और माँ-बाप यही देखकर वो बड़े होते है तो आखिर कैसे विकसित हो वह सोच? जिसमें वसुद्यैव कुटुम्बकम का वास है।यह सोचनीय है।यह मूल और आधारभूत कारण ही तमाम विकृति की जड़ है, जो सामाजिक, प्राकृतिक और सांस्कृतिक उद्देश्यो से दूर ले जाती है और हम गलती पर गलती करते जाते हैं ।

मौजूदा वक्त में महामारी अनेक प्रकार की बीमारी और बढ़ती मृत्यु का आँकड़ा पुनः प्रकृति के गुस्से का प्रकोप कहा जाता है।अनेक प्रकार की भ्रांतियाँ है ।लेकिन इतना तो सच है कि इस बंदी ने एक काम तो अवश्य किया कि पुनः प्रकृति प्रेम की मानसिकता जरूर तैयार कर दी है।अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसका कितना पालन करते हैं ।आने वाले समय में यह एक रास्ता भी दे गया है सरकार और पर्यावरण विशेषज्ञ के लिए कि बंदी कर पर्यावरण प्रदूषण को कम किया जा सकता है।यह एक वरदान के तौर पर देखा जा रहा है अगर किसी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ तो वह है हमारी प्रकृति तो पर्यावरणविद का खुश होना लाजिमी है।

“आशुतोष”

नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
पटना ( बिहार)
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।