संसार का सार्वभौमिक नियम है परिवर्तन और इसी परिवर्तन के कारण ही संसार संचालित भी है। दशकों पहले जब मनोरंजन के संसाधन सीमित थे तब न तो टेलीविज़न था न ही अन्य कोई संसाधन, तब नुक्कड़ नाटकों, मैदानों में होने वाली रामलीला, मेले, हास्य मंच व कवि सम्मेलनों की दुनिया भी जीवित और स्वीकार्य थी।धीरे-धीरे बदलाव आते गए, सिनेमा और टेलीविज़न का दौर आया, फिर छोटे पर्दे की धमक हुई। इसी से मनोरंजन के साधनों में बदलाव आने लगे। गोष्ठियों और सम्मेलनों की हिस्सेदारी फिर भी बनी रही, और यशस्वी भी हुई। किन्तु वर्तमान युग अब इंटरनेट युगीन हो रहा है। समय की अपनी मर्यादाएँ भी हैं और पसंद-नापसंद का अपना चक्कर। ऐसे दौर में नए ज़माने ने फिल्मों और शॉर्ट फिल्मों ने भी वेब सीरीज़ में अपना अस्तिव बनाना आरम्भ कर लिया है।
वर्तमान में कोरोना संकट से समूची मानवजाति संकट में है, और अर्थव्यवस्था की तो बात ही करना खतरा है। ऐसे दौर में मनोरंजन, राष्ट्र जागरण, गीत-संगीत और हास्य के लिए आयोजित होने वाले कवि सम्मलेनों पर भी संकट आना स्वाभाविक है। क्योंकि यह व्यवस्थाएँ प्रायोजक आदि पर निर्भर करती हैं और अभी देशबन्दी के बाद प्रायोजकों का मुख्य ध्यान तो स्वयं की आर्थिक कमर मज़बूत करने पर होगा, विज्ञापन आदि के खर्चों में कटौती होना स्वाभाविक है। तब ऐसे समय में वो क्या करेंगे जो केवल कविता या कवि सम्मेलनों पर ही आश्रित होकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं! कविता और कवि सम्मेलन या छोटे स्वरूप में कहें तो काव्य गोष्ठियाँ ये न तो मिटेंगी न ही कमज़ोर होंगी। सच तो यह है कि कवि सम्मेलन का अपना स्तर होता है और वह प्रायोजक पर निर्भर करता है। संकट और देशबन्दी के हालात में निश्चित तौर पर अभी कुछ माह तो संकट रहेगा।फिर बाज़ार के स्वस्थ और सुचारू होते वह भी पटरी पर आ जायेगा।
इसी बीच कवियों को यूट्यूब, फेसबुक एवं स्वयं की वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन काव्य रसिक श्रोताओं तक अपनी ऊर्जावान रचनाएँ उपलब्ध करवानी चाहिए। इससे दो फ़ायदे होंगे, एक तो यूट्यूब, गूगल इत्यादि से विज्ञापन प्राप्त होंगे और आय का स्त्रोत बनेगा, दूसरा प्रसिद्धि मिलेगी, नए श्रोता मिलेंगे, जो निश्चित तौर पर हालात सामान्य होने पर और आपको पसंद करने के चलते कवि सम्मेलन में सुनना चाहेंगे। यह भी व्यावसायिक दृष्टिकोण से लाभकारी है।
साथ ही निकट भविष्य में छोटे पर्दे के साथ-साथ वेब सीरीज़ जैसे नेटफ्लिक्स, हेशफ्लिक्स, अल्ट बालाजी, अमेज़ॉन प्राइम जैसे अनेकोनेक प्लेटफॉर्म पर भी कवियों के लिए विशेष कार्यक्रम बनेंगे जो आय के स्त्रोत के रूप में उभरेंगे।
वैसे वेब सीरीज़ का भी अपना अलग मिजाज़ है, उस पर व्यक्तिशः पसंद-नापसंद के मापदंडों और घटकों-सामग्रियों (कंटेंट) की गुणवत्ता के आधार पर आर्थिक लाभ में कम-ज़्यादा होना चलता रहता है।
निकट भविष्य में वेब सीरीज़ का दौर आने वाला है। लोग 250 से 300 रुपये महीना केबल ऑपरेटर को देने की बजाए ओटीटी (ओवर दी टॉप) ऑनलाइन स्ट्रीमिंग वेबसाइट्स प्लेटफार्म वालों को सालाना सब्सक्रिप्शन ख़र्च देना पसंद कर रहे हैं और यह लोगों की पहली पसंद बन भी गई है।
ऐसे नए दौर में कवि सम्मेलनों को भी ओटीटी प्लेटफार्म पर आने में देर नहीं लगेगी। यह भी कवि सम्मेलनों का भविष्य कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है।
भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म की दस्तक के साथ ही भारत की वीडियो स्ट्रीमिंग इंडस्ट्री इस दौर में अब तेज़ रफ़्तार के साथ आगे बढ़ रही है। यानी दर्शकों की पहुँच में सुलभ मनोरंजन का माध्यम है ओटीटी प्लेटफॉर्म ।
“ओवर-द-टॉप” (ओटीटी) मीडिया सेवाएँ मूल रूप से ऑनलाइन सामग्री प्रदाता हैं जो स्ट्रीमिंग मीडिया को केवल उत्पाद के रूप में वितरित करती हैं। इसे वीडियो-ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म के रूप में भी समझा जा सकता है। भारत समेत दुनिया भर में ओटीटी (ओवर द टॉप) प्लेटफॉर्म दर्शकों के बीच अपनी ख़ा जगह बना रहे हैं, लेकिन यही प्लेटफॉर्म मीडिया के पारंपरिक माध्यमों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म के पास बड़ा यूज़र बेस है और इन प्लेटफॉर्म पर किसी भी समय अपना मन-पसंद कंटेन्ट देख पाना ही दर्शकों को और करीब लेकर आ रहा है।
भारत में नेटफ्लिक्स और वाल्ट डिज़्नी (हॉटस्टार)अपने कंटेन्ट विस्तार के लिए कई मिलियन डॉलर का निवेश कर रहे हैं। इन सभी ओटीटी दिग्गज भारत जैसे बड़े बाज़ार में अपनी जगह सुनिश्चित करना चाहते हैं। इनके अलावा ज़ी5, ऑल्ट बालाजी, अमेज़न प्राइम, टीवीएफ़ जैसे घरेलू प्लेटफॉर्म भी घरेलू दर्शकों को रिझाने के लिए रणनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं। ये सभी प्लेटफॉर्म क्षेत्रीय भाषाओं में कटेंट का निर्माण कर रहे हैं और घरेलू प्लेटफॉर्म पर सब्स्क्रिप्शन भी औसतन सस्ता है।
भारत की वीडियो स्ट्रीमिंग इंडस्ट्री अब तेज़ रफ़्तार के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार है। बीते साल प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वीडियो स्ट्रीमिंग इंडस्ट्री 21.82 प्रतिशत की रफ़्तार के साथ साल 2023 तक 11 हज़ार 977 करोड़ रुपये की इंडस्ट्री बन जाएगी। आज उपभोक्ता स्मार्ट उपकरणों की एक विस्तृत श्रृंखला के माध्यम से अपने स्वयं के मीडिया की खपत को नियंत्रित कर सकते हैं और ओटीटी सेवाओं का उपयोग करके चैनलों को लेकर अपने व्यक्तिगत चयन को सुनियोजित कर सकते हैं।
ऐसे दौर में कवियों को भी अपने घटकों (कंटेंट) की गुणवत्ता को निखार कर इस दिशा में आगे आना चाहिए, ताकि इस अवसर का लाभ उठाने में कवियों की यह तकनीकी समृद्ध पीढ़ी पीछे क्यों रहें।
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
हिन्दीग्राम, इन्दौर