विपत्ति हो या विपत्तियां धेर्य एक मात्र सुअवसर है।जो सब से उत्तम विकल्प है।विपत्तियों पर विजय पाने की सदृड़ इच्छाशक्ति किसी भी अवसर से अति आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है।
कोई भी योद्धा युद्ध में शरीरिक शक्ति से अधिक इच्छाशक्ति से विजय प्राप्त करता है।सर्वविधित है कि जीवन के किसी भी संघर्ष में वही हारते हैं।जो संघर्ष से विमुख हो जाते हैं,अन्यथा युगों-युगों के इतिहास एवं धर्मग्रंथ साक्षी हैं कि निरंतर संघर्ष करने वाला कभी हारा नहीं है।
उल्लेखनीय है कि पुरुषार्थ की परीक्षा की कसौटी का नाम विपत्ति है और विपत्तियों में ही मानव अपनी, अपने परिवार की, मित्र वर्ग की, अपने सगे संबंधियों के साथ-साथ सभ्य समाज की भी जांच कर सकता है।
यही नहीं विपत्तियां ही मानव जीवन को उसकी कुशलता के साथ-साथ जीना-मरना सिखाती हैं।माना यह भी गया है कि समय रहते गृहस्थ संबंधियों से विरक्ति का ज्ञान भी विपत्तियां ही सिखाती हैं।