रचनात्मकता को मरने न दें

0 0
Read Time2 Minute, 51 Second

devendr joshi
मित्रों,आज विश्व रचनात्मकता दिवस पर बात अपने-अपने भीतर छुपी रचनात्मकता की। विधाता की सर्वश्रेष्ठ कृति के नाते हम सबमें कोई- न-कोई रचनात्मकता अवश्य छिपी है। आवश्यकता सिर्फ उसे पहचानने की है। रचनात्मकता सिर्फ लेखन,प्रकाशन,चित्रकारी,कलाकारी, अभिनय,गायन-वादन आदि तक ही सीमित नहीं है। इसका फलक इतना व्यापक है कि, उसे किसी एक विधा में बाधा नहीं जा सकता। जो इनमें से किसी विधा में नहीं है,उनमें भी अकूत रचनात्मकता भरी पड़ी है।आवश्यकता सिर्फ उसे पहचानने और बाहर लाने की है। अपने आपके साथ प्रयोग कीजिए। अपनी जिन्दगी को अपने ढंग से जीने की कोशिश कीजिए। अपने अंदर के नवाचारों को बाहर लाईए। रचनात्मकता हमारे अंदर भरी पड़ी है और उसे अंजाम देने के संसाधन हमारे चारों तरफ बिखरे पड़े हैं। इसके लिए किसी तरह के धन-पैसे,अवसर,अनुकूलता की जरुरत नहीं है,बस अपनी मौलिकता को पहचान कर उसे बेखौफ होकर मित्रों और परिवार वालों के साथ साझा करने की आवश्यकता है।आपके अंदर की यह रचनात्मकता ही है,जो आपको एक पशु से अलग करती है और हर इन्सान को विशिष्ट बनाती है। अपनी रचनात्मकता के साथ ही व्यक्ति अन्त तक तरोताजा और सृजक बना रहता है। अपने अन्दर की रचनात्मकता जब मिटने लगती है ,रफ्ता-रफ्ता व्यक्ति भी मिटने लगता है। अतः रोटी,रोजगार, आजीविका और संसार के हर दायित्व को अंजाम देते हुए भी अपनी रचनात्मकता को उसमें समाहित करते चलिए। फिर आप देखेंगे कि, जिन्दगी एक नए रुप मेंx आपके सामने खड़ी है। फेसबुक,वाट्सएप, ट्विटर और कट-पेस्ट-फारवर्ड की दुनिया से बाहर निकलकर जरा अपनी मौलिक रचनात्मकता को बाहर तो लाईए। एक सतरंगी संसार आपकी नव मनोरम कल्पना के लिए स्वागतातुर खड़ा है।

                                                                        #डॉ. देवेन्द्र  जोशी

परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

तनाव अर्थात जीवन में नया बदलाव

Fri Apr 21 , 2017
आजकल हलचल और काम का बोझ मनुष्य को बहुत जल्दी विचलित कर देता है, जिसे ‘तनाव’ का नाम दिया जाता है। आज इससे सबसे ज्यादा महिलाएं सफ़र कर रही हैं। हम बेटियों को बेटे के बराबर की शिक्षा दे रहे हैं पर,जब वो इस लायक बन जाती तब बात आती। […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।