मित्रों,आज विश्व रचनात्मकता दिवस पर बात अपने-अपने भीतर छुपी रचनात्मकता की। विधाता की सर्वश्रेष्ठ कृति के नाते हम सबमें कोई- न-कोई रचनात्मकता अवश्य छिपी है। आवश्यकता सिर्फ उसे पहचानने की है। रचनात्मकता सिर्फ लेखन,प्रकाशन,चित्रकारी,कलाकारी, अभिनय,गायन-वादन आदि तक ही सीमित नहीं है। इसका फलक इतना व्यापक है कि, उसे किसी एक विधा में बाधा नहीं जा सकता। जो इनमें से किसी विधा में नहीं है,उनमें भी अकूत रचनात्मकता भरी पड़ी है।आवश्यकता सिर्फ उसे पहचानने और बाहर लाने की है। अपने आपके साथ प्रयोग कीजिए। अपनी जिन्दगी को अपने ढंग से जीने की कोशिश कीजिए। अपने अंदर के नवाचारों को बाहर लाईए। रचनात्मकता हमारे अंदर भरी पड़ी है और उसे अंजाम देने के संसाधन हमारे चारों तरफ बिखरे पड़े हैं। इसके लिए किसी तरह के धन-पैसे,अवसर,अनुकूलता की जरुरत नहीं है,बस अपनी मौलिकता को पहचान कर उसे बेखौफ होकर मित्रों और परिवार वालों के साथ साझा करने की आवश्यकता है।आपके अंदर की यह रचनात्मकता ही है,जो आपको एक पशु से अलग करती है और हर इन्सान को विशिष्ट बनाती है। अपनी रचनात्मकता के साथ ही व्यक्ति अन्त तक तरोताजा और सृजक बना रहता है। अपने अन्दर की रचनात्मकता जब मिटने लगती है ,रफ्ता-रफ्ता व्यक्ति भी मिटने लगता है। अतः रोटी,रोजगार, आजीविका और संसार के हर दायित्व को अंजाम देते हुए भी अपनी रचनात्मकता को उसमें समाहित करते चलिए। फिर आप देखेंगे कि, जिन्दगी एक नए रुप मेंx आपके सामने खड़ी है। फेसबुक,वाट्सएप, ट्विटर और कट-पेस्ट-फारवर्ड की दुनिया से बाहर निकलकर जरा अपनी मौलिक रचनात्मकता को बाहर तो लाईए। एक सतरंगी संसार आपकी नव मनोरम कल्पना के लिए स्वागतातुर खड़ा है।
#डॉ. देवेन्द्र जोशी
परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।