भारी सियासी उठापटक के बाद महाराष्ट्र एवं हरियाणा का मतदान समाप्त हो गया सभी पार्टियों ने अपने-अपने राजनीतिक समीकरणों को बखूबी बैठाया। अनेकों प्रकार के आरोप-प्रत्यारोप का भी खूब दौर चला। पक्ष एवं विपक्ष दोनों ओर से जनता को अपने पाले में करने हेतु अनेकों प्रकार की विधि का प्रयोग किया गया। सत्ता पक्ष जहाँ अपनी सरकार के द्वारा किए हुए कार्यों को गिनाता रहा वहीं विपक्ष सत्ता पक्ष के द्वारा किए गए हुए कार्यों में खामियाँ निकालता हुआ आलोचना करता हुआ दिखाई दे रहा था। सत्ता पक्ष जहाँ अपनी चुस्त-दुरूस्त कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए जनता से पुनः अपने पक्ष में वोट करने की अपील करता रहा वहीं विपक्षी दल सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल दागते हुए उस पर उँगलियाँ उठाते रहे। आरोपों का दौर चलता रहा और चुनावी समीकरण बनते बिगड़ते रहे। सभी पार्टियों के नेता अपना-अपना सियासी बाँण छोड़ते रहे। हरियाणा एवं महाराष्ट्र की जनता नेताओं के द्वारा छोड़े गए हुए प्रत्येक बाँणों को बखूबी धरातल पर रखकर आँकलन करती रही। यदि शब्दों को बदलकर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा कि नेता अपना कार्य करते रहे और जनता अपना कार्य करती रही। सभी पार्टियों के नेता हो हल्ला करते रहे और जनता शान्ति से समय की प्रतीक्षा करती रही कि जब समय आ जाएगा तो हम उचित जवाब देंगे।
अतः उचित समय आने के बाद जनता ने अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए मतों को आधार बनाते हुए शान्त शब्दों में जवाब देते हुए ई.वी.एम के अन्दर सभी उम्मीदवारों के भाग्य को कैद कर दिय़ा। तमाम उम्मीदवारों ने जनता के बीच अपने पसीने बहाए परन्तु, मतदान के बाद जो भी खबरें जनता के बीच चर्चाओं के माध्यम से उभरकर सामने आ रही हैं वह खास करके विपक्ष की चिंता और बढ़ा देने वाली हैं। क्योंकि, तमाम दावों के बावजूद भी जनता ने लगभग विपक्ष को फिर एक बार नकार दिया और भाजपा के पक्ष में पुनः मतदान कर दिया ऐसी खबरें जनता के बीच से आ रही हैं कि महाराष्ट्र एवं हरियाणा में फिर से भाजपा की सरकार बनना तय माना जा रहा है। एक्जिट पोल की अगर बात करें तो एक्जिट पोल के भी आँकड़े यही दर्शा रहे हैं। कि महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 211 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है। वहीं, हरियाणा में भी भाजपा फिर से सत्ता की ओर बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। यह अलग बात है कि जीत का अंतर बहुत अधिक न हो परन्तु भाजपा फिर से एक बार हरियाणा में बड़ी पार्टी बनकर सत्ता में वापस आ रही है। कांग्रेस की बात करें तो महाराष्ट्र में कांग्रेस-एन.सी.पी गठबंधन को कोई खास बहुमत मिलती नहीं दिखाई दे रही है। महाराष्ट्र से इतर यदि हरियाणा के विधान सभा चुनाव पर नज़र डालते हैं तो कांग्रेस को केवल 20 से 25 सीटों से संतोष करना पड़ा सकता है। यदि एग्जिट पोल की बात करें तो सभी एक्जिट पोल्स में महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना स्पष्ट बहुमत हासिल करती हुई नजर आ रही है। कांग्रेस की असफलता का कारण उसका जमीनी स्तर पर मजबूत संगठन न होना तथा पार्टी के अन्दर आपस में ही गुटबाजी एवं रस्सा कसी होना। कांग्रेस के घटते हुए जनाधार की मुख्य वजह है। क्योंकि, कांग्रेस का संगठन जमीनी स्तर पर मजबूत नहीं है। बदलते हुए राजनीति के दौर में अब देश की जनता उसी को अपना नेता मानती है जिसका संगठन जमीनी स्तर पर मजबूती के साथ अपने पैर जमाए हुए जनता के बीच सदैव खड़ा रहे। यदि शब्दों को बदलकर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा कि अब राजनीति पार्ट टाईम वाली नहीं, अब राजनीति का रूप, रंग और ढ़ंग सभी कुछ बदल चुका है। अब राजनीति के क्षेत्र में दिन-रात कार्य करना पड़ता है। जनता के सुख-दुख में कंधे से कंधा मिलाकर चलना होता है। छोटे से छोटा समारोह अथवा शोकसभा में संगठन से जुड़े हुए व्यक्तियों को पहुँचना अनिवार्य होता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो जनता तुरंत अपना नया मसीहा खोज लेती है। और दूसरी पार्टी के कार्यकर्ता के साथ जुड़ जाती है।
अतः राजनीति अब कोई खेल नहीं रह गया। यदि शब्दों को बदलकर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा कि आज के समय में देश की राजनीति का रूप एक युद्ध के समान हो चला है। जिसमें पूरे दम-खम के साथ मेहनत करनी पड़ती है। शून्य स्तर पर बहुत ही मजबूती के साथ कार्य करना पड़ता है। मतदाताओं पर अंतिम समय तक अपना ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। तब जाकर सत्ता का स्वाद चखने को प्राप्त होता है।
राजनीति विश्लेषक।
(सज्जाद हैदर)