अच्छी तरह याद है
इतवार था उस दिन…
कबाड़ी वाले की आवाज
गली में गूंज रही थी
घर के कबाड़ के साथ
बिक गई थीं कुछ अमूल्य निधि भी
बस १२ के भाव में…
कब सोचा था कि एक रद्दी बेचने वाला
ले जाएगा मेरे जीवन के सारे एहसास
कुछ अनकहे,कुछ अनछुए…
हवा थम-सी गई थी…
और सन्नाटे शोर कर रहे थे…
डाइरी के पन्ने पंखों की हवा से
फड़फड़ा कर अपने होने
का एहसास दिला रहे थे…
कोरे पन्ने जो स्याही से रंगकर
फिर कबाड़ी में चले जाएंगे…
कहीं कुछ नहीं था….
बस एक गर्द-सी जमी थी,
दिल के आस पास…।
दिन गुज़र गए…एक शाम
मूँगफली वाले को डोंगा बनाते हुए सुना
मैडम जी क्या शेर है…
‘मुट्ठी भर धूप तुम्हारे दामन में बिखेर दूँ….
और सोख लूँ तुम्हारी आँखों की नमी को…।’
ये शायर लोग भी अजीब होते हैं मैडम जी,
अपने भेजे में तो कुछ भी नहीं घुसता…
अपुन को क्या करना…वैसे मैडम जी
आप तो काफी पढ़ी लिखी हैं….
ये शायर क्या कहना चाहता है??
शब्द खो गए थे मेरे…
और खामोशी लिए दो बूंद आँसू
उस कागज़ पर टपक पड़े…
ये थी मेरी कविताओं की श्रद्धांजलि।
#रश्मि अभय
परिचय : रश्मि अभय का पैतृक स्थान महाराजगंज(सीवान,बिहार) है।आपकी शिक्षा बीए,एलएलबी सहित बैचलर इन मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज़्म है। संप्रति स्वतंत्र पत्रकार और लेखन की है। एक राजनीतिक पत्रिका की ब्यूरो चीफ हैं। समृद्धशाली उच्च मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी ‘रश्मि’ को लिखने-पढ़ने का शौक बचपन से ही रहा,मगर इसे कार्यरूप में इन्होंने करीबन 10 साल पहले शुरू किया। प्रकाशित पुस्तकें-सूरज के छिपने तक,मेरी अनुभूति,उमाशंकर प्रसाद स्मृति ग्रंथ शब्द कलश'(साझा संग्रह,सहोदरी कथा सोपान (साझा संग्रह)एवं सौ कदम
(साझा संग्रह)आदि आपके लेखन के गवाह हैं। कुछ पुस्तकें भी आने वाली हैं। आप लेखन में ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं और पटना(बिहार)में रहती हैं।