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जाने क्या कमी हो गई है संस्कार मे
कि ईमान बीकने लगे हैं बाजार में।
हर तरफ झुठ के तलबगार मिलेंगे
सच्चाई का दुश्वार है जीना संसार में।
पढ़ें लिखे लोग क्रिकेट में मशगूल है
चोर बदमाश आ गये है सरकार में।
अफसरशाही हावी है जनता पर
योजनाएं निपट रही है भ्रष्ट्राचार में।
किसान मर रहे हैं खेती करते-करते
जयशाह का मुनाफा बडा व्यापार मे।
सच लिखे वो कलम अब मिलती नहीं
कवि हो या पत्रकार सब है ‘दर-बार’ में।
संजय अश्क
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