भारत में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है, सरकार से सम्बंधित सारी योजना को जन- जन तक पहुँचाने में तथा जनता की आवाज को सरकार तक पहुचाने में मीडिया का अद्वितीय योगदान है,और इतना ही नहीं गाँव की हर छोटी-बड़ी घटना को समाचार पत्र के माध्यम से देश ही नहीं बल्की विश्व पटल पर तीव्र गति से पहुंचाने के कार्य में भी मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। एक तरह से देखा जाय तो यह एक-दूसरे के मध्य संवाद का कार्य करता है,और संवाद में किसी-न-किसी भाषा की आवश्यकता पड़ता है ।
हम सभी जानते हैं,कि विश्व में मंदारीन (चीन की भाषा ) और अंग्रेजी के बाद सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है। इस संदर्भ में हमारे देश भारत की बात की जाय तो स्वभाविक है, कि यहाँ भी सबसे अधिक हिन्दी भाषा ही बोली जाती है। इस द्रिष्टी से किसी भी समाचार को पढ़ने तथा समझने के लिए हिन्दी भाषा को सबसे लोकप्रिय और आम-जन की भाषा कहने में शायद किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए,लेकिन अपसोस की बात यह है कि अब तक यह सिर्फ राज-भाषा बन कर ही रह गया है। अभी तक इसे राष्ट्र-भाषा का दर्जा नहीं प्राप्त हो सका है। न तो इस तरफ किसी नेता का ध्यान जाता है,और न ही मीडिया की। कभी-कभी देश के किसी कोने से इसको लेकर अगर आवाज उठती भी है, तो वह भी जस का तस ही रह जाता है, या फिर किसी साजिस का शिकार होकर उसे दबा दिया जाता है ।
भारत जैसे इस विशाल देश में हिन्दी को राज-भाषा से राष्ट्र-भाषा का दर्जा दिलाने में वर्तमान समय में मीडिया बहुत ही कारगर अस्त्र साबित हो सकता है।किसी भी प्रकार के प्रचार का प्रभाव जितनी तेजी से मीडिया का लोगों पर पड़ता है,उतनी तेजी से किसी और का नहीं। छोटे से छोटे तबके के लोग अपने आप को देश से जुड़ने के लिए, मीडिया पर द्रिष्टी जमाये रखता है, इसी तरह युवा वर्ग भी मोबाइल या अन्य माध्यम से हर समय मीडिया से जुड़े रहना पसंद करते है। ऐसे में अगर हिन्दी से जुड़ी बात या हिन्दी की विशेषता को बताई जाए,तथा इसकी संस्कृति को संपूर्ण पटल पर रखा जाय,तो यह एक जन आंदोलन की भांति उभर कर सामने आ सकता है। हिन्दी भाषा के उत्थान एवं विकास के लिए समाज के जो बुजुर्ग वर्ग है, उन्हे भी युवा वर्गे के साथ आकर इस विषय पर बड़े पैमाने पर मीडिया में बहस पर जाय, जिससे और लोग भी इन सब बातो में रूचि ले सके तथा अपना मत प्रकट कर सके,की आखिर इतनी बड़ी संख्या में लोगो द्वारा हिन्दी बोलने के बावजूद इसे राष्ट्र-भाषा का दर्जा क्यों नही दिया जा सका है ? आखिर इसमें क्या कमी है ? इन सब बातो पर ध्यान देते हुए,मीडिया हिन्दी को राज-भाषा से राष्ट्र-भाषा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
उठो दोस्तो, त्यागो अब तुम मौन
छोड़ो अब गुलामी इस अंग्रेजी का
एक बार आवाज तो लगाओ यारो,
देखो भारत ही नही संपूर्ण विश्व में
हिन्दी का प्रचंड-ध्वज कैसे लहराता है ।।
#पुष्कर कुमार