एक सूरज मेरे अंदर भी

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devendr joshi

एक सूरज बाहर,
आग उगल रहा है..
दूसरा सूरज मेरे,
अन्दर जल रहा है।

मेरे अन्दर सुलग रहे,
सवाल चैत्र,वैशाख और
जेठ में तपने वाले सूरज,
के तीक्ष्ण तेवर से भी तल्ख हैं।

वे बार-बार मुझे झकझोरते,
हैं कि एक ही मुल्क के बाशिंदे..
होकर भी लोगों के बीच,
असमानता की खाई..
इतनी गहरी क्यों है?

किसी ने दुनिया मुट्ठी में,
कर ली है तो कोई एक..
मुट्ठी आसमान के लिए,
भी तरस रहा है।

तरक्की की दौड़ में कोई,
आसमान जितना ऊंचा..
उठ गया है तो किसी,
को जमीन में धंसने
लायक आबोहवा भी,
मयस्सर नहीं है।

कोई मजहब के नाम पर,
रोटी रोजगार से बेदखल..
हो रहा है तो कोई मुकम्मल,
तालीम पाकर भी गुजर
बसर लायक धंधे-पानी..
का जुगाड़ करने में भी
असमर्थ है।

जिसे देखो वह अपने ही,
अन्दर की आग में झुलसता..
नजर आ रहा है।

बस सिर्फ मुट्ठी भर लोगों,
का ही एक वर्ग ऐसा है जो..
चैन की बंसी बजा रहा है।

अन्नदाता की आत्महत्याएं/
आरक्षण की आग/प्रान्तीयता,
की लपटें/कथनी और करनी..
का अंतर/दोहरे मापदंडों की
सियासत और अंतर्जाल की
मायावी दुनिया में अपनों के
बीच बेगाने होते हम..
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो,
मुझे अंदर-ही अंदर..
खाए जा रहे हैं।

चाहकर भी मैं,
इन उबलते सवालों की..
झुलसन से अपने-आपको,
रोक नहीं पा रहा हूँ।

बाहर के सूरज के तेवर,
तो फिर भी हवा,पानी,कूलर..
रेफ्रीजरेटर,शीतल पेय पदार्थ,
प्रकृति की हरितिमा और
शाम ढलने के अहसास
के साथ नरम पड़ जाते हैं।

लेकिन मेरे अंदर के सूरज,
के तेवर मौसम,हालात,तारीख..
दिन,महीने और हालात के बदलने
पर भी कभी नरम नहीं पड़ पाते हैं।

जब-जब कोई सियासत,
हालात बदलने के सुनहरी..
सब्जबाग दिखाती है,
मेरे अंदर के सूरज को जैसे..
पंख लग जाते हैं,
वही पुराने घाव फिर हरे
हो जाते हैं।

बरसों से इन जख्मों को,
कुरेदने और उन पर आश्वासनों..
का मरहम लगाने का यह खेल,
ऐसे ही चल रहा है..
जैसे,एक सूरज बाहर,
आग उगल रहा है..
दूसरा सूरज मेरे,
अंदर जल रहा है।

                                                                           #डॉ. देवेन्द्र  जोशी

परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।