किस्मत के खेल निराले ,
अमृत कहीं विष के प्याले , कोई सोये महलों में ,
कई तूफानों नें पाले .
कोई धोये झूठे बर्तन ,
पाप कोई कराए जबरन .
किसी की पांव तले गर्दन, किसी के मुँह पर बांधे ताले.
किस्मत तेरे खेल निराले.
स्कूल जाए कोई टांगे बस्ता, कबाड़ चुगे कोई रस्ता- रस्ता. कहीं पे जीवन इतना सस्ता, बहता फिर भ्रूण नाले -नाले .
किस्मत तेरे खेल निराले.
गधा बना कोई काज करे ,
कोई घर में बैठा राज करें. हाजमा खा कोई हाज करें, किसी के घर में नहीं निवाले .
“मीन” किस्मत खेल निराले.
हे ईश्वर तूने कर दिए चाले, आस्तीन में जो साँप हैं पाले. जिन कर्म लिखण म किए घोटाले .
किये गरीबी नाम हवाले, किस्मत तेरे खेल निराले .
स्वरचित मौलिक रचना
#डॉ. मीना कुमारी सोलंकी
नीमलीआली, हरियाणा