गुनगुनी सी : धूप आंगन की

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साहित्य यात्रा : धूप आंगन की , सात खण्ड में विभक्त एक ऐसा गुलदस्ता है
जिसमें साहित्यिक क्षेत्र की विभिन्न विधाअो के फूलों की गंध को एक
साथ महसूस करके उसका आनन्द लिया जा सकता है । भारतवर्ष की ख्यात लेखिका
श्रीमति शशि पुरवार ने इस गुलदस्ते को आकार दिया है। हिन्दी साहित्य जगत
में श्रीमति शशि पुरवार एक सशक्त हस्ताक्षर है ।
इन्दौर में जन्मी शशि पुरवार ने यहीं के गुजराती साईंस कॉलेज से
विज्ञान की उपाधि प्राप्त की है . मालवा की माटी में ही साहित्य का बीजारोपण
हुआ जो आज एक वटवृक्ष के रूप में हमारे सम्मुख है. विसंगतियों के खिलाफ
अपने प्रयासों के लिये शशि पुरवार को महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा
2016 में ‘भारत की 100 वूमन्स अचीवर ऑफ इण्डिया‘ नामक सम्मान से नवाजा
गया है । आप गीत, आलेख, व्यंग्य, गजल, कविता, कहानी व अन्य विधाओं में
अपनी संवेदना व्यक्त करती रही है ।

” धूप आंगन की ” मुझे अपनी सी व सुहानी सी लगती है . कभी कोयल की कूक
तो कभी पायल की रूनझून मन को गुदगुदाने लगती है । संवेदनाए भी जीवन की
झर धूप में, नेह छांव की तलाश करती नजर आती है । गजल खण्ड में लगभग 24
गजलें धूप आंगन के ईद र्गिद मंडराती है , कभी इश्क का जखीरा पिघलता है,
तो कभी आंगन में लगा नीम ढेरो उपहार देने के बाद भी मुरझाता सा प्रतीत
होता है ।

मधुवन मे महकते हुए फूल हो या गजल के करिश्में , हर रचना में
रचनाकार की कोमल संवेदनाअों का उठता ज्वार, समुद्र से गहरे विचार को
दर्शाता है. बनावटी रिश्तों की कसक हर आंगन में होती है लेकिन इस आँगन
की धूप ने स्पष्ट किया है कि ‘हर नियत पाक नहीं होती‘ है व वक्त
लुटेरा बनकर सबको लूटता है. ज्ञान का दीप भी धरूँ मन में,­ जिंदगी फिर
गुलाब हो जाए जैसी गजलों के नाजुक शेर की यह पंक्तियाँ पूर्णत:
गुलिस्तां की महक को समेटने में सफल रही है.

रचनाकार के मन में हिन्दी के प्रति जन्में अगाध श्रद्वा भाव ने
हिन्दी को विभिन्न उपमा, अलंकार में श्रंृगारित करते हुए बेहद सुन्दर
उद्गार प्रेषित किये है . यह प्रेम उनकी रचना मे नजर आता है. गजल
के यह शेर देखें
कि सात सुरों का है ये संगम,
मीठा सा मधुपान है, हिन्दी ।
फिर वक्त की नजाकत, दिल की यादें, और सांसों में बसी हो क्या, यहां आते
आते धूप आंगन की; जाडों में गुनगुनी धूप का अहसास दिलाती है तथा
संवेदनाअों की कोमल धूप थोडी देर अौर आंगन में बैठने के लिए मजबूर
करती है । इस साहित्यिक यात्रा में जैसे जैसे धूप तेज होती है वैसे-वैसे
गर्मी की ,उष्णता भी महसूस होने लगती है . ऐसी ही एक गजल है जिसके शेर
है
घर का बिखरा नजारा अौर है व
गिर गया आज फिर मनुज,
कितना नार को कोख में मिटा लाया‘
शेर पढकर धूप की चुभने का अहसास होता है . आहिस्ता-आहिस्ता गजल में
प्रेम की फुलवारी फिर से महकने लगती है कि हौसलों के गीत गुनगुनाअो ।

एक बात और कहना चाहूगा कि गजल खण्ड को पढते-पढते आखों कहीं नम होती है
तो कहीं ह्रदय को मानिसक सुकुन मिलता है . संवेदनाएँ हमारे ही परिवेश
को रेखांकन करती हुई अपने ही इर्द गिर्द होने का अहसास कराती है ।

संवेदनाअों की वाहिका, धूप आंगन से होते हुए ‘लघुकथा‘ खण्ड में प्रवेश
करती है जहां सामाजिक ताना-बाना, रौशनी की किरण बनकर ; हर एक लघुकथा के
माध्यम से दिव्य संदेश की वाहिका बनकर पाठकों तक पहुंचती है । लघुकथा
खण्ड में समाज में हुए मानसिक पतन, जीवन का सच, गरीब कौन, दोहरा
व्यक्तित्व तथा विकृत मानसिकता, स्वाहा और ममता आदि लघुकथाएँ समाज को
सार्थक संदेश देती है । जीवन की तपिश में जाडो की नर्म धूप सा अहसास
होता है . संग्रह के लघुकथा खण्ड में जब नया रास्ता, आईना दिखाता है तो
अर्न्तमन का सुकून संवेदना के रूप में बाहर झलकता है । समाज में व्याप्त
अंधविश्वास ,खोखले रिवाजों के बीच सलोनी के चेहरे पर आई मुस्कान पढ कर
अर्न्तमन तृप्त हो जाता है । बडी कहानी खण्ड में ” नया आकाश ” आम गृहणी
की मनोदशा का मार्मिक चित्रण हैं , यह कहानी हर किसी गृहणी को अपनी ही
संवेदनाओं का अहसास कराती है . कहानी के अंत में नारी सम्मान पर जीवन
साथी द्वारा दिये गये संदेश अपनी दिव्यता की महक छोडतें है कि “नारी
का काम सृजन करना ही है, मन में आत्मविश्वास हो तो नारी कुछ भी कर सकती
है. हर नारी के अंदर कोई न कोई प्रतिभा होती है, जिसे बाहर लाना चाहिये‘
अपनी पत्नी पर गर्वीली आंखों में आई चमक का बख्ूाबी वर्णन किया है ।
विभिन्न विधाअों में किया गया लेखन; जब व्यंग्यता की ओर बढता है तो
लगता है कि व्यंग्य का चुटीलापन रचनाकार के लेखन की हर विधा मे नजर आता
है फिर चाहे वह लघुकथा हो, कविता हो या व्यंग्य; हर पल संवेदना के गहरे
बादल मंडराते है।

बोझ वाली गली में टोकरे ही टोकरे‘ में साहित्य जगत का टोकरा व प्रकाशक व
संपादक के टोकरे में अलादीन का चिराग तथा स्वयं अपने काम के टोकरे से
परेशानी को बेहद चुटीले अंदाज में पेश किया है । अडोस-पडोस का दर्द व
विचारों में मिलावट, हिंदी की कुडंली में साढे साती के चलते हिंगलिश में
थोडी सी विंग्लिश का नव प्रयोग को जहाँ समाज का आईना दिखाता है वहीं
समाज की विसंगतियों पर प्रहार करके सामाजिक खोखली मानसिकता को व्यक्त
करता है.

गजल, लघुकथा, बडी कहानी व व्यंग्य में गुनगुनाने के बाद जब साहित्य
यात्रा आलेख के माध्यम से शिक्षित बन अधिकार जाने महिलाएँ , बाल शोषण
समाज का विकृत दर्पण, आत्महत्याओं पर विचारोत्तेजक आलेख, लेखक की विद्वता
व संवेदनशीलता को परीलक्षित करते है ।

जीवन उस रेत के समान है जिसे मुटठी में जितना बाँधना चाहें वह उतना ही
फिसलती जाती है । सकारात्मक जीवन जीने के लिए तथा बेहतर जीवन बनाने के
लिये कर्मशील होना आवश्यक है और नकारत्मकता को सदैव दूर रखना चाहिए.
खाली दिमाग शैतान का घर होता है ; अपना शौक को पूरा करें ये कुछ ऐसी
नसीहते है जो सीधे सरल और सहज रूप से इन लेखों के माध्यम से कही गई है ।
जो आम आदमी को निराशा के गर्त से बाहर आने मे मददगार सिद्ध होती हैं .

सकारात्मक सोच को प्रवाहिर करते शशि पुरवार जी के लेख आज के दौर में
ज्यादा प्रासांगिक नजर आते है । साहित्यिक यात्रा के अगले चरण में डायरी
के पन्नों से ; बाल काल की समेटी हुई कवितायें है . इन कविताओं को
पढकर महसूस होता है कि बालमन में ही संवेदनाए जन्म लेकर नव आकाश का
निर्माण करेगीं. देश के ख्यात कवियों की शैली की झलक मुझे इन रचनाअों ने
नजर आई है। सर्वप्रथम लिखी हुई कविता ” कहाँ हूँ मैं ” ने ही लेखिका के
मन मे जन्में भाव ने कवि ह्रदय की गहन संवेदनाओं के पंख पसारने तभी शुरू
कर दिये थे .

इन पन्नों में नारी के अस्तित्व पर जहाँ सवाल उठें है वहीं छलनी हो रहे,
आत्मा के तार, चित्कारता हदय करे पुकार है। कभी रूह तक कंपकंपाता दर्द
है तो कभी आशा की किरण भी समाहित है । झकझोरते हुए जज्बात हैं तो कहीं
खारे पानी की सूखती नदी है. कभी शब्दों की छनकती गूँज है तो कभी
सन्नाटे में पसरी आवाजे चहुं ओर बिखरी नजर आती है । इसी खण्ड में तलाश को
तलाशते हुए रेखांकन बरबस ही नजरों में ठहर जाते हैं . अौर संवेदना के
अतल सागर डूब कर अनुभूतियों में गोते लगाते है, तो कभी श्वासोच्छवास
की दीर्ध ध्वनि व ह्रदय की धडकनों की पदचाप सुनाई पडती है।

काव्य की बात हो और चांद से संवाद न हो यह मुमकिन नहीं है . चांद से
अकेले में संवाद करती हुई शशि पुरवार जी की बालपन की रचना में सौंदर्य
व प्रेम की पराकाष्ठा नजर आती है . ह्रदय चाँद में डूबा हुआ विलिन होने
के लिए मचलता है. प्रेम व संवेदना की कोमल वाहिका चांद के साथ साथ
बेटियों पर भी अपना ममत्व न्यौछावर करती है। अनगिनत उपमा, अलंकार और
श्रृंगार से श्रंृगारित काव्य खण्ड में मन रसमय होकर तल्लीन हो जाता है
. जब चिडियों सी चहकती , हिरनों सी मचलती बेटियां हमें खिलखिलाने के
लिये मजबूर करती है।

इस खण्ड मे भूख , चपाती अकेला आदमी, सपने , जीवन की तस्वीर पढ कर जहाँ
मानसिक क्षुधा शांत होती है वहीं हिय में अनगिनत प्रश्न मन को विचलित
भी करतें है . संग्रह में लेखक ने रचनाअों के माध्यम से सामाजिक
मुद्दों व कोमल संवेदनाअों पर खुला प्रहार किया है. सभी मुद्दों को बेहद
नजाकत के साथ प्रस्तुत किया है । कहतें है ना कि कडवी गोली खिला दी अौर
कडवाहट का अहसास भी नही हुआ. कुल मिलाकर 168 पृष्ठों में समाई धूप ऑंगन
की : एक एेसी साहित्य यात्रा है जो विराम नहीं होती है अपितु सतत एक
झरने की भांति अर्न्तमन में अनगिनत प्रश्नों को छोडकर बहती रहती है ,
वहीं कोमल धूप दिल दिमाग पर छाकर नेह सा अहसास भी कराती । एक लेखक की
सार्थकता इसी बात से सिद्व हो जाती है कि उसकी रचना व्यक्ति के मन
मस्तिष्क पर अपनी अमिट छाप छोडने में सक्षम है । किताब में रेखांकित
रचनाएँ खण्ड के अनुरूप है जो अक्षर के साथ भावों को एकाकार करती है

बेहद सधे हाथों से किया रेखांकन कल्पना लोक की सैर कराता हुआ आम आदमी
को उसकी पृष्ठभूमि से जोड़ता है . हर पृष्ठ पर चढती बेल का रेखंाकन पुस्तक
में मूल रूप से समाहित आशावाद का प्रतीक है । इस पुस्तक में रचनाकार के
साथ हर पृष्ठ पर भावों की नवीनता पाठकों में रूचि पैदा करती है । मुख
पृष्ठ से लेकर पुस्तक के मूल नाम ” धूप आँगन की ” के अनुरूप शशि
पुरवार का यह संग्रह यथा नाम तथा गुण सूत्र को सार्थक करता है । दिल्ली
पुस्तक सदन द्वारा सुन्दर मुद्रण से धूप आंगन की साहित्य यात्रा को
मुकम्मल मंजिल मिली ।
बेहद सुन्दर संग्रह हेतु शशि पुरवार को कोटि कोटि बधाई। उनकी कलम यूँ ही
अनवरत चलती रहे व समाज को लाभान्वित करें।

#विजयसिंह चौहान

परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि  ५ दिसंबर १९७० और जन्मस्थान इन्दौर हैl आप वर्तमान में इन्दौर(मध्यप्रदेश)में बसे हुए हैंl इन्दौर शहर से ही आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की हैl आपका  कार्यक्षेत्र इन्दौर ही हैl सामाजिक क्षेत्र में आप सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हैं,तो स्वतंत्र लेखन,सामाजिक जागरूकता,तथा संस्थाओं-वकालात के माध्यम से सेवा भी करते हैंl विधा-काव्य,व्यंग्य,लघुकथा व लेख हैl उपलब्धियां यही है कि,उच्च न्यायालय(इन्दौर) में अभिभाषक के रूप में सतत कार्य तथा स्वतंत्र पत्रकारिता में मगन हैंl 

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।