ज्योति जैन का ‘यात्राओं का इंद्रधनुष ‘के यात्रावृतांत संग्रह में -कैलाश मानसरोवर ,लेह -लद्धाख ,सिक्किम,केरल,तारकली ,थाईलेंड ,झाबुआ की यात्राओं अनुभवों एवं वहाँ की विषेशताओं का सटीक वर्णन कर पाठकों के दिलों में यात्राओं के प्रति अनुराग भरा और स्वयं ने भी महसूस किया कि यात्राएँ थकाती नहीं बल्कि नई ऊर्जा देकर नया अनुभव कराती है | प्राकृतिक स्थलों के रखरखाव हेतु आम आदमी से भी गुहार लगाई है क्योकिं आम आदमी के सहभाग के बिना प्रकृति संरक्षण असंभव है | इसमें सुझाव पसंद आए की जब भी किसी नदी ,समुद्र या पहाड़ के निकट जाएँ तो कोशिश करें कि वहाँ की साफ़ -सफाई में सहयोग बना रहें | यात्राओं के अनुभव में दैवीय अनुभूति ,चकित कर देने वाला सौन्दर्यं ,पेड़ों पहाड़ों से लिपटे बादल ,हरियाली का मनोरम लैंडस्केप ,वाटर स्पोर्ट का रोमांच ,सोना उगलने वाली भूमि ,पर्यावरण क्रांति के संग यात्राओं के पक्ष में बहुत सुंदर पंक्तियाँ से समझाया है -“यात्राएँ निःसर्ग का अभिनंदन है /माँ वसुधा का वंदन है /मनुष्य की विरासत का अभिषेक है /यात्रा का विचार ही नेक है /यात्राओं में हमारे गतिमान होने रहने का संदेश है /यात्राएँ सदैव विशेष है | ”
कैलाश मानसरोवर की यात्रा बहुत ही दुर्गम मानी जाती है | यहाँ एक विरल अनुभूति है कैलाश दर्शन की कैलाश वंदन की | अपने को शिवमय कर लेने की | वहां के मनोरम दृश्य चमत्कृत तो करते ही है | जब सूरज की किरणेंकैलाश पर पड़ती तो श्वेत बर्फ से ढंका विशाल पर्वत स्वर्णिम आभा से दमकने लगता है |रास्ते में यात्रा के दौरान पड़ने वाले स्वच्छ झीलों ,सुंदर और व्यवस्थित शहर,खेतों ,मंदिरों ,वहां के लोगों ,बोलियों से ,किवदंतियों से आदि से मन प्रसन्न हो जाता है |
लेह-लद्दाख़,सिक्किम में धरती का अनुपम सौंदर्य चुंबकीय आकर्षण पैदा करता है | ये पर्वतीय क्षेत्र के रास्ते दुर्गम एवं काफी ऊंचाइयों से भरे होने के बावजूद मनमोहक है| केरल पूर्ण साक्षरता के लिए शुद्ध प्राकृतिक मसालों के लिए जाना जाता है | गोवा-तारकली में वॉटर स्पोर्ट के अनुभवों में साफ पानी में रंग बिरंगी मछलियों को अपने आस-पास देखना बेहद सुंदर लगता है | थाईलैंड में वहां के वर्तमान के राजा किंग रामा की सोच प्रेरणादायी है | वे सिर्फ जनता व देश की भलाई का सोचते है और समृद्धि के बारे में सोचते है ,न कि स्वयं की | वहां के कई मंदिरों में भारत की स्पष्ट छाप दिखाई देती है | थाईलैंड की अपनी अलग खूबी है | वहां हाथियों का स्टेज शो भी होता है | झाबुआ -हलमा परम्परा है | यानि संकट के समय जब किसी एक व्यक्ति के बस का कोई काम नहीं रहता ,तब परहित में कई लोग एक साथ उस कार्य में जुट जाते है व् उसे पूर्ण करते है और इसकार्य के लिए वे कोई पैसे नहीं लेते | हलमा का एक उदेश्य ये भी है की जल ,जमीन ,जानवर व् जंगल बचाना | हजारों आदिवासी का भागीरथी प्रयास स्तुतेय है और प्रेरणादायी है | लोक संस्कृति में विभिन्न पर्वो को मनाते आ रहे और उन्हें विलुप्तता से बचाते भी आरहे है | यात्राओं का इंद्रधनुष में विस्तृत रंग समेटे हुए संग्रह नयनभिराम आवरण पृष्ठ,और रंगीन छाया चित्रों से ऐसा निखारा की मानो हम भी यात्रा पर पहुँच गए हो | इस यात्रा की बधाई और भविष्य में की जाने वाली यात्रा के लिए अग्रिम शुभकामनाएं स्वीकार करेतकी जो यात्रा पर जा न सके वो पढ़कर भी वृतांत का आनंद ले सकें | बेहतर अंक यात्रा वृतांत के लिए हार्दिक बधाई |
प्रथम संस्करण -2018
मूल्य -300 /-
प्रकाशक -शिवना प्रकाशन सीहोर
सज -सज्जा एवं मुद्रण -संजय पटेल प्रोडक्शन इंदौर
लेखिका – ज्योति जैन ,नंदा नगर ,इंदौर -452011
#संजय वर्मा ‘दृष्टि’
परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।