बदल सी गई है तासीर हवाओं की,
फ़िज़ा ने अंदाज़ भी बदला है ।
हो कर मस्त मलंग मोहब्बत में तेरी,
कहां अब ये दिल अकेला है ।।
इश्केदारियां लुभा रही हैं दिल को मेरे,
ये दुनिया तो बस झमेला है ।
महक़ उठें है अब गलियां चौबारे देखो,
हुआ मस्ताना क़मर,हुआ आफताब पगला है ।।
ये शरारतें, ये साज़िशें, हैं कोशिशें मिलन की,
है ये मज़हर ए उल्फ़त, नहीं हवस का तबेला है।।
हर सिम्त है रोशन चरागां यूं मोहब्बत के,
नहीं है अंधेरी अमावस,बस खुशियों की बेला है।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।