पशुपालन

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 rajendra anekant
पुराने इतिहास की सम्पन्नता का यही प्रमाण है कि आज भी हमारे देश के संबंन्ध मे कहा जाता है और हमारी एक कविता की भी यही पक्तियाँ है कि यहाँ:-
घर घर मे गैंया पलती थी
दूध की नदियाँ बहती थी
हर घर मे दूध पिया जाता
गौधन को नित पूजा जाता
परन्तु आज पशु नही बचे किन्तु
दूध उत्पाद तो मिठाई घी क्रीम आदि अनेक प्रकार के
जो कि दूध के अभाव मे जहर मिले बन रहै हैं और बच्चे बूड़े बेमोत मर रहे हैं और किसान मिट रहा वो अलग अतः स्वयं सिद्ध है कि पशुपालन के बिना विकास असंभव है इसी बात को हमने आल्हा छंद मे कहने का प्रयास किया है छंद मे कमी हो सकती है किन्तु हमारे विचारों से असहमति तो नही…
देखिए सादर…..
आज देश की हालत देखो,
जहर मिलो सब खाँय अनाज।
असाद्ध रोग से पीड़ित किन्तु,
चेते फिर भी नही समाज।।
पशुअन की हत्या करवा कैं,
पापी अधम बने सरताज।
भ्रष्टाचारी लूटामारी,
तो भी कहलाते महाराज।।
पशुपालन आधार सँभालो,
देखो कैसे खिसकत जाय।
देशी खाद कहाँ से मिल्हे,
पशु आवादी कमतर भाय।।
पशु बिना नई कोंनउ चारा,
खूब बनाओ चारागाह।
घर घर गैया भैंस पालिए,
यदि तुमको है कछु परवाह।।
बेरुजगारी कैंसें फैली,
थोड़ो तो रे करो विचार।
किसान पुत्र सब खाली बैठे,
खेती सें रय हाँथ पसार।।
एकई एकड़ खेती हो पर,
उतनई घास लियो उगाय।
दस दस गैयाँ भैंस पलेंगी,
तब किसान की दुगनी आय।।
दूध अकेलो नहि बेंचो तुम,
खुदी बनाव दूध उत्पाद।
क्रीम रबड़ी घी मिठाई सब,
समझो हुईयो तब आवाद।।
गोबर गैया मूत्र  संगमें,
बोनस समझो भैया यार।
नौकर बनकैं का पाओगे,
पशुअन सैं तो अपरंपार।।
पुरा कथाएँ अपनी देखो,
पशु कहाते थे भगवान।
कय कैं उनसे चले जीविका,
जीसें धरम करम इंसान।।
आखिर लिखें कहाँ लो भैया,
अपनी इतनई सीमा जान।
भारत महिमा तो अनंत रे,
‘अनेकांत’कवि तो नादान।।
#राजेन्द्र’अनेकांत’

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