नववर्ष से मिली सीख

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aashutosh kumar

वक्त गुजर रहा था अपने हिसाब से वह 29 दिसम्बर की सर्द इरात थी अगले सुबह मुझे और रिनू को जाना था नये साल सेलेब्रेशन पर इसलिए हमलोग तैयारी में लगे थे दर असल मेरी छुट्टी आज ही अप्रूव हुई थी इसलिए मैने दो टिकिट ट्रेभल एजेंसी से उपलब्ध करवा लिए थे 31दिसम्बर की सुबह-सुबह नये शहर और नये -नये जगह के बारे में प्लान कर रहा था।पिताजी बरामदे में टहल रहे थे उन्होने कहा! देखो! ठंढ बहुत है और कुहासा भी जोरों की पड़ रही तुम लोगों को जाना ही था एक दो रोज पहले चले जाते आज कल ट्रेन का कोई भरोसा नही रहता, कही तुम लोग का न्यू ईयर ट्रेन में ही न बीत जाय।मैने कहा नहीं पिताजी! ट्रेन तो आज भी समय से गई है मैने चेक कर लिया था दरअसल मैने झूठ बोला था, रिनू की तसल्ली के लिए फिर अगली सुबह हमलोग गाँव से निकल गए और बस पकडने, बस स्टैण्ड आ गये।गजब की ठंढ का एहसास हो रहा था इक्के दुक्के लोग ही दिख रहे थे मैने पूछा एक पान वाले से ये पटना वाली बस कब आएगी?पानवाले ने कहा भैया आ तो जाती थी समय तो हो गया है शायद कुहासे की वजह से लेट है आप वो सामने लाल टी शर्ट वाले से पूछ लो वो बता देगा मै उसके पास गया और पूछा भैया! वो पटना वाली बस कब आएगी 12 बजे से पहले की उम्मीद नही ठंढ ज्यादा है न कुहासा के कारण दो धंटे रूका हुआ था अब धीरे धीरे आ रहा है उसने पूछा! कहा जाना है? मैने कहा! पटना, चिता मत करिए पाँच बजे तक पटना पहुँचा देगे ।मै कर भी क्या सकता था वापस आकर रिनू के पास बैठ गया और दोनो बातें करने लगे और बस का इंतजार, अपने आप पर गूस्सा भी नही हो सकता था क्योंकि रिनू बूरा न मान जाय इसका भी डर था।आखिरकार बस आयी तकरीबन एक बजे होगे फिर हमलोग बस से पटना के लिए चल पड़े पटना पहुँचते शाम हो गयी हमलोग स्टेशन आ गये गाडी का समय हो चला था मुझे मालूम था बराबर इसी प्लेटफार्म नम्बर से सम्पूर्ण क्रांति एक्सप्रेस खुलती है इसलिए मै और रिनू चार नम्बर प्लेटफार्म पर आ गये। चारो ओर धना कोहरा धुआँ-धुआँ सा फैला रहा था चका चौंध रोशनी में खुले हवा का शीतल झोंका हर आने वाले पल को विशाल बना रहा था तभी अलाउन्स हुई 12393 संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से पाँच घण्टे विलम्ब से चलने की सूचना है अर्थात 11 बजे रात को।हमलोग तो जैसै फ्रीज हो गये सभी यात्री एक दूसरे को देखने लगे एक तो इतनी ठंढ और उस पर गाडी का लेट होना मेरा मुँह चिढा रहा था दूसरी अब रिनू भी नाराजगी जता रही थी सब आपके झूठ के कारण होता है पिताजी सही कह रहे थे चलिए लौट जाते है लेकिन मै अनसूना कर वही बैठा किताब पढता रहा लगभग तीन बजे सुबह ट्रेन आई अब तो यह पक्की हो चुकी थी कि रात बारह बजे से पहले दिल्ली पहुँचना मुमकिन नही है पर इस बात को मै व्यक्त नही कर सकता था ।
गाडी पटना से रवाना हो चुकी थी और दिन की अपेक्षा गाडी की रफ्तार धीमी थी।कोई किसी से नही बोल रहा था  शायद गाडी के लेट होने से सभी झुंझलाये हुए थे।सुबह होने वाली थी लेकिन कोहरे की वजह से कुछ दिखाई नही दे रहा था गाडी चलते हुए मुगल सराय वर्तमान दीन दयाल उपाध्याय ज•पहुँचा सुबह के सात बजे थे। मैने स्टाल से चाय ली और चाय पीने लगे गाडी खुलने का इंतजार कर रहे थे रिनू गहरी नीद मे थी मैने जगाना मुनासिव नही समझा और इसी बीच गाड़ी खुल गई जहाँ-तहाँ रूकते हुए ऐन केन प्रकारेन गाडी कानपुर पहुँची  शाम के सात बज रहे थे वो कहावत है “न घर के रहे न घाट के” शायद वही चरितार्थ होने वाली थी मैने हिसाब लगाया तो कम से कम दो तो जरूर बजेंगे पहुँचते पहुँचते इसलिए मैने रात के खाने का आर्डर दे दिया था । गाडी चलती थी कभी सिगनल पर कभी स्टेशन पर या कभी विरानो मे घंटो रूक जाती इस तरह रात के बारह बजने वाले थे क्या- क्या मन मे ख्वाब लेकर घर से निकले थे हम दोनो पर शायद ट्रेन की लेट लतीफी ने हमलोगो को इतना शर्मसार किया कि मैने निर्णय कर ली कल ही वापस चल दूँगा और नये साल कि जश्न गाँव मे ही मनाऊगा।जैसे-6तैसे हमलोग सुबह 1 जनवरी को स्टेशन पहुँचे दोनो अपने निर्धारित स्थान पर पहुँचकर फ्रेश होने और थोडा घूमने के बाद पुनः मै टिकिट की व्यवस्था की और शाम की गाडी पकडकर वापस घर आ गया पिताजी वही बगीचे में टहल रहे थे हमलोगो को देखकर खुश हुए और आश्चर्य चकित भी। मैने उनको सारी घटना क्रम संक्षेप में बताया तो उन्होने कहा बेटा बडे बुजुर्ग जब कोई बात बोलते है तो उसमें अनुभव छुपा होता है पर आजकल उस अनुभव की कद्र करने वाला बहुत कम लोग है बडे बुजुर्ग की बात ऐसे नही टाला जाता खैर इससे तुम्हें सीख मिली होगी जाव हाथ मुँह धो लो और सबको प्रणाम करके आ जाव फिर नव-वर्ष सेलेब्रेट करते है सभी लोग मिलकर दो जनवरी है तो क्या हुआ।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।