Read Time2 Minute, 38 Second
प्रेम सभी से सकल हो, भाव अपने अटल हो !
और अपनो को अपनो से ही आशाये हो !
जो बिन बोले व्यथा अपनो की जान ले !
और मुसीबत में फसे अपनो को उभर दे !!
खुशियों के लिए क्यों, किसी का इंतज़ार !
आप ही तो हो अपने,जीवन के शिल्पकार !
चलो आज हम सब, मुश्किलों को हराते हैं !
और दिन भर,परिवार के साथ मुस्कुराते हैं !!
भक्ति में हम भगवान को सुनते है !
स्वाध्याय में हम भगवान् की सुनते है !
पर सुनने के लिए वक्त नहीं इंसान को !
सुनाने के लिए वक्त ही वक्त है इंसान को !!
क्योकि इंसान अपने आप में बुध्दिमान है !
गलत होते हुए भी खुद को ही श्रेष्ठ कहता है I
और अपनी उपलब्धियों को खुद ही गिनता है !
और अपने मियां मिठू खुद ही बन जाता है !!
वो दुसरो की सफलता देख नहीं सकता !
अपने से ऊँचा किसी और को देख नहीं सकता !
अपनी ही सफलता का गुण गान खुद ही करता है !
और अपने आगे किसी को भी कुछ नहीं समझता है I!
यहाँ खेल तो बर्षो पुराना है,
इसमें क्या अपना और क्या पराया है !
इंसान इंसान को ही निचा दिखता है /
और इंसानियत को भूल जाता है //
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
Post Views:
363