बच्चों के साथ,
बच्चा बनना..
कितना अच्छा,
लगता है।
समय पता,
नहीं चलता..
दिन ऐसे,
निकल जाता है..
जैसे बच्चा,
एक-एक पाँव..
चलता है।
धूप-छाँव,
चलता है..
समय आगे,
निकल जाता है..
परछाई पीछे,
छूटती है.
लंबी होकर।
हम इस समय को,
कभी पकड़ नहीं पाते.
लंबी परछाईयाँ,
ओझल हो जाती है..
यह सोचकर,
साँसें बोझल..
हो आती है।
समय इंतजार,
नहीं करता..
कैद करना होता है,
इस समय को।
हर पल जी लो,
जीतकर..
हंसी-ख़ुशी से।
आगे बढ़कर,
छीन लो..
जिंदगी को
जिंदगी से।।
#अरुण कुमार जैन
परिचय: सरकारी अधिकारी भी अच्छे रचनाकार होते हैं,यह बात
अरुण कुमार जैन के लिए सही है।इंदौर में केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग में लम्बे समय से कार्यरत श्री जैन कई कवि सम्मेलन में काव्य पाठ कर चुके हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त सहायक आयुक्त श्री जैन का निवास इंदौर में ही है।
आपकी रचनाओं मे बचपन का माधुर्य है !!! सुन्दर रचना !