मेवाड़ की धरती चितौड़गढ़ : यात्रा वृतांत

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gulab
चितौड की यात्रा मेरे लिए एक यादगार प्रसँग है क्यूँ कि हमें राजकुमार राजन फाउंडेशन, अकोला, चितौडगढ़, राजस्थान की ओर से श्री अम्बालाल हिंगड़ हिन्दी बाल साहित्य अवार्ड २०१६-१७ शाल, पुष्पमाला और रु.२१००/- रूपये की धन राशी के साथ दिया गया था, और उसी कार्यक्रम में हमें “समीर दस्तक साहित्य पत्रिका” भोपाल की ओर से “साहित्य गौरव सम्मान-२०१७” भी प्रदान किया गया था | हमें जिस होटल में निवास करवाया था, उसी होटल में रात में राजकुमार जैन की अध्यक्षता में कवी सम्मलेन भी आयोजीत किया गया था |

हमारा कार्यक्रम था उसी दौरान पद्मिनी मूवी का विवाद चल रहा था | हम दुसरे दिन किल्ले में गये तब वहां के राजपूत समाज के लोग पंडाल की निचे अनशन पर बैठे थे | किल्ले में हमने रजवाडी पोषक में घुड़सवारी की थी और तस्वीरें भी संस्मरण के रूप में खिंचवाई थी | हम एक दिन के राजा बन गए ऐसी अनुभूति हुई थी |

साहित्यकार के रूप में राजकुमार जैन फाउंडेशन अकोला की ओर से दो अवोर्ड के लिए चयनित कोने के कारण चितौड़गढ़ जाने का, देखने का सुंदर अवसर मिला था |
कार्यक्रम के दुसरे दिन हम सभी साथी साहित्यकार / कवि मित्रों ने चितौड़गढ़ में स्थित किल्ला देखने का प्लान बनाया | हम एक कार से मित्रों के साथ चितौड़गढ़ में प्रवेश किया | बहुत ऊंचाई पर यह किल्ला स्थित है | बहुत ही सुंदर है | ऐसी पौराणिक और ऐतिहासिक जगह देखना हमारे नसीब में एक सुंदर तक है | चितौड़गढ़ का पहला शाका राघव रामसिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र रतनसिंह इ.स. १३०२ में चितौड़गढ़ की गद्दी पर बैठा था | उसके बैठने के कुछ ही महीनों बाद अलाउदीन खिलजी ने चितौड़ पर आक्रमण किया | करीबन छह मास तक दुर्ग की रक्षा के लिए टक्कर लिया किन्तु, जब दुर्ग की रक्षा कर पाना संभव न रहा गया तो दुर्ग के भीतर की स्त्रियों ने रतनसिंह की रानी पद्मावती के नेतृत्व में जौहर किया | हिन्दू वीरों ने राजा रतनसिंह को शाका किया | चितौड़ दुर्ग पर खिलजी का अधिकार हो गया | उसके बाद अलाउदीन खिलजी ने चितौड़ का राज्य अपने पुत्र खिजरवां को सोंप दिया व उसका नाम चितौड़ से बदलकर “खिजराबाद” रख दिया | चितौड़ दुर्ग में मीराबाई का मंदिर स्थित है | मीरा का जन्म इ.स. १५०४ में हुआ था | उसका विवाह महाराजा सांग के जयेष्ट पुत्र लोजराज के साथ हुआ था | मीरा ने अपना मन कृष्ण की भक्ति में लगा दिया था | मीरा के परिवारजनों को ये अच्छा नहीं लगता था | अंत में मीराने मेवाड़ त्याग दिया था | सांगा के बाद में मेवाड़ की गद्धी पर महाराणा रतनसिंह बैठा था | सन १५३३ में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चितौड़ पर आक्रमण कर दिया था |
मेवाड़ की वीर भूमि पर ९ मई सन १५४० को वीर शिरोमणि महाराजा प्रताप का जन्म हुआ था | महाराजा प्रताप सन १५७२ में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे, उस समय चितौड़ सहित मेवाड़ के अधिकांश ठिकानों पर अकबर का अधिकार हो गया था |
अजमेर खंडवा जाने वाले रेल मार्ग पर चितौड़ जंक्शन आता है | चारों ओर मैदान से घिरी हुई पहाड़ी है | जिस पर प्रसिध्ध किला चित्रकूट (चितौड़गढ़) बना हुआ है | ६३ एकड़ भूमि पर ये बसा है | चितौड़गढ़ के प्रथम द्वार को पाडन पोल कहते है | वहां एक चबूतरा है | वहां बांधसिंह का स्मारक है | धमासान युध्ध के दौरान लहू की नदी बहती थी | उसमें एक पाडा बहकर प्रवेश द्वार तक आ पहुंचा | इसी लिए उसे पाडन पोल द्वार कहेते है | भैरव पोल, हनुमान पोल और चौथा द्वार गणेश पोल है | पांचवां और छठा साथ होने से जोडन पोल कहते है | लक्ष्मण मंदिर के पास छठा प्रवेश द्वार है उसे लक्ष्मण पोल कहते है | सातवाँ प्रवेश द्वार राम पोल है | राम पोल के भीतर सिसोदिया पता का स्मारक है | पुरोहित की हवेली भी है | तुलजा भवानी का मंदिर भी है | दासी पुत्र बनवीर ने इ.स. १५३६ में निर्माण करवाया था | बनवीर ने इ.स.१५३६ में दुर्ग को दो भागों में दुर्ग की दीवार बना के बाँट दिया था | उसके पास नवलखा भंडार है | यहाँ नौ लाख रुपयों का खजाना पड़ा रहता था इस लिए उसे नवलखा भंडार कहते है |
पुरातत्व संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियाँ और बड़ी बड़ी तोपें रखी गयी है | भामाशाह की हवेली भी है | उसने हल्दीघाटी के युध्ध दौरान महाराणा प्रताप का धन राजकोष खाली हो गया था तब भामाशाह ने अपनी पूरी पीढ़ियों का संचित धन महाराणा को भेट किया था | महाराणा सांगा का देवरा शृंगार चवरी के दक्षिण में भगवान नारायण देव की आराधना के लिए बनवाया था |
फ़तेहप्रकाश महल भी है | जो उदेपुर के महाराणा फ़तेहसिंह ने बनवाया था | इ.स. १४४८ में महाराणा कुम्भा के खजांची बेलाक शृंगार ने शृंगार चवरी का निर्माण करवाया था, वो शांतिनाथ मंदिर है | वहां महाराणा कुम्भा का भी महल है | यहाँ मीरा कृष्ण की आराधना की व विषपान स्वीकार किया था | ये महल चितौड़ का गौरव है | एक सुरंग है, जिसे पद्मिनी के जौहर का स्थान बताया जाता है | सतीत्व की रक्षा के कारण महारानी पद्मिनी के साथ हजारों वीरांगनाओ ने सुरंग के रास्ते से गौ मुख कुंड में स्नान किया व तहखानों में विश्व प्रसिध्ध जौहर किया था | वहां पुराना मोती बाजार भी खंडहर के रूप में है | सतबीस देहरी जैन मंदिर कला उत्कृष्ट है | कुम्भ श्याम का मंदिर भी है |
मीरा मंदिर कुम्भ श्याम मंदिर के चोक में है | अब वहां मीरा व कृष्ण की भक्ति प्रतिमा है | मंदिर के सामने संत रैदास की छतरी भी बनी हुई है | जटाशंकर महादेव का मंदिर विजय स्तंभ की ओर जाते समय मीरा मंदिर के सीधे हाथ की तरफ स्थित है |
विजय स्तंभ मालवा के महमूद शाह खिलजी को हरा कर अपनी ऐतिहासिक विजय की याद में महाराणा कुम्भा ने बनवाया था | इ.स. १४४८ में बनवाया था | १२२ फिट ऊँचा है | नौ मंजिला है ३० फिट चौड़ा है | समिधेश्वर महादेव का भी मंदिर है | महासतियों का जौहर स्थल जो चारों ओर दीवारों से घिरा हुआ है | चितौड़ में बहादुरशाह के आक्रमण के समय हाडी रानी कर्मवती ने १३ हजार वीरांगनाओं के साथ यहाँ जौहर किया था |
कलिका मंदिर के आगे नौ गजा पीर की मजार है | पदमनी महल झील के किनारे बनी है | एक छोटा महल पानी के अंदर बना है | जो जनाना महल कहलाता है | राघव रतनसिंह की रूपवती रानी पदमनी इन महल में रहती थी | वहां मरदाना महल है | उस में एक कमरे में विशाल दर्पण जो जनाना महल की सीढियों पर खड़े व्यक्ति का स्पष्ट प्रतिबिंब दर्पण में नजर आता है | परन्तु पीछे मुड़कर देखने पर सीढि पर खड़े व्यक्ति को कोई भी नहीं देख सकता है | अनुमान है कि अलाउदीन खिलजी और रतनसिंह यहाँ बैठ कर शतरंज खेल रहे थे तो उसने इस दर्पण से रानी पदमनी का प्रतिबिंब देखा | यहाँ गौ मुख कुंड भी है | जयमल पताका महल भी है | कलिका मंदिर है | सूर्य कुंड, खातन रानी का महल भी देखने को मिला | भाक्सी नाम का कारागार भी है | चित्रांग मोरी का तालाब भी है | राज टीला है | दुर्ग की अंतिम छोर चितौड़ी बुज नामसे जाना जाता है | गोरा बादल की हवेली है | राव रमल की हवेली भी है | यहाँ भीमलत कुंड भी है | इस पांडव भीम ने लात मारकर बनाया था | इस लिए उसे भीमलत कुंड कहते है | चौदवीं सताब्दी का ७५ फिट ऊँचा छोटा कीर्ति स्तंभ भी है | उसकी बाजु में महावीर स्वामी का मंदिर बना हुआ है | चारभुजा विष्णुजी का मंदिर है | रतनसिंह का महल है | बाण मातो का मंदिर भी है | लाखोटी बारी महाराणा लाखा ने बनवाया था | चल फिर शाह की दरगाह शहर के बीच गोल प्याऊ चौराहे के सामने करीबन ८० वर्ष पुराणी है |
चितौड़ दुर्ग से ११ किमी उत्तर में नगरी नाम अति प्राचीन स्थल है | चितौड़ ६० किमी उत्तर पूर्व में मात्रु कुण्डियाँ है | जो राजस्थान का हरिद्वार के रूप में प्रसिध्ध है | बनास नदी के तट पर स्थित है | चितौड़गढ़ से १४२ किमी उत्तर पूर्व में बिजोलिया से ३० किमी दूर दक्षिण में मेनाल धरती पर महानाव नदी में १२२ मीटर की ऊंचाई से एक झरना (जल-प्रपात) गिरता है | ये स्थान पर हम जा नहीं सके | भदेसर गाँव से १५ किमी दूर ‘मंडफिया’ गाँव में सांवरियाजी का विश्व विख्यात मंदिर है | काले पत्थर की श्री कृष्ण की मूर्ति, मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में स्थापित है | यह सावंरिया शेठ का मंदिर कहलाता है | चितौड़ बहुत सुन्दर स्थल है | एक बार अवश्य मुलाकात लें |

#गुलाबचन्द पटेल

परिचय : गांधी नगर निवासी गुलाबचन्द पटेल की पहचान कवि,लेखक और अनुवादक के साथ ही गुजरात में नशा मुक्ति अभियान के प्रणेता की भी है। हरि कृपा काव्य संग्रह हिन्दी और गुजराती भाषा में प्रकाशित हुआ है तो,’मौत का मुकाबला’ अनुवादित किया है। आपकी कहानियाँ अनुवादित होने के साथ ही प्रकाशन की प्रक्रिया में है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन(प्रयाग)की ओर से हिन्दी साहित्य सम्मेलन में मुंबई,नागपुर और शिलांग में आलेख प्रस्तुत किया है। आपने शिक्षा का माध्यम मातृभाषा एवं राष्ट्रीय विकास में हिन्दी साहित्य की भूमिका विषय पर आलेख भी प्रस्तुत किया है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय(दिल्ली)द्वारा आयोजित हिन्दी नव लेखक शिविरों में दार्जिलिंग,पुणे,केरल,हरिद्वार और हैदराबाद में हिस्सा लिया है। हिन्दी के साथ ही आपका गुजराती लेखन भी जारी है। नशा मुक्ति अभियान के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी दवारा भी आपको सम्मानित किया जा चुका है तो,गुजरात की राज्यपाल डॉ. कमला बेनीवाल ने ‘धरती रत्न’ सम्मान दिया है। गुजराती में ‘चलो व्‍यसन मुक्‍त स्कूल एवं कॉलेज का निर्माण करें’ सहित व्‍यसन मुक्ति के लिए काफी लिखा है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।