स्त्री
अपने सारे दायित्व
जनम से लेकर मरने तक
निभाती है
बिना कुछ कहे
सब कुछ सहती है
हर पीड़ा
हर दर्द वो सह जाती है
फिर भी हमेशा
दोषी स्त्री ही ठहराई जाती है
क्यों??
इस क्यों ? का कोई
जवाब नहीं
ख़ुद भूखी रहती है
बच्चों को पालती है
बर्तन में अन्न का एक दाना नहीं
पर कहती है मैंने खा लिया
हर छण ख़ुश रहती
ससुराल में चाहे लाख कष्ट सहती
पर माता पिता से यही कहती
बहुत ख़ुश है वो
हक़ीक़त कभी नहीं बयाँ करती
जिन बच्चों को जन्म दिया
परेशान करें वो
फिर भी फ़िक्र उनकी उसे
सदा ही रहती
बेटी , पत्नी , बहू हो या फिर माँ
हर रूप में सदा अपनों के
साथ खड़ी रहती
अपने हर फ़र्ज़ अदा करती
अदिति रूसिया
वारासिवनी