आज समूचा देश शोक के महासागर में डूब गया है। देश का एक महान सपूत चुपके से इस लोक से अलविदा कह गया है। मेडिकल साइंस के सारे प्रयोग असफल हो गए हैं। देह यात्रा जैसे पूरी हो गई है। आत्मा परम धाम की अनंत यात्रा पर निकल चुकी है।
उम्र के हिसाब से 93 वर्ष का लंबा जीवन जिया ..किन्तु पिछले लगभग एक दशक से खामोशी में…एक प्रकार की शून्यता में जीते रहे…नियति ने भी ऐसे महान योद्धा के भाग्य में कैसी पीड़ा लिख दी..
क्या कोई शब्द पर्याप्त है इस भाव को व्यक्त करने के लिए…क्या कोई संदेश पूर्ण है इस श्रद्धांजलि को व्यक्त करने के लिए…
आप हमेशा ही एक एक भारतवासी के दिल में रहेंगे।
आप की पंक्तियां आज बरबस याद आती हैं…
जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।
बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ।
सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।
रक्सौल के डा. स्वयंभू शलभ को गत 31 दिसंबर 2017 को भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के गृह नगर ग्वालियर में आयोजित *काव्य सन्ध्या* में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित होने का गौरव प्राप्त हुआ था।
*साहित्य साधना संसद* के तत्वावधान में नव वर्ष की पूर्व संध्या पर भारत रत्न अटल जी को समर्पित यह कार्यक्रम इंद्रगंज स्थित सनातन धर्म मंदिर परिसर, ग्वालियर में आयोजित किया गया था।
तमाम जाने माने साहित्यकारों कवियों ने अपनी रचनाओं से ग्वालियर के कण कण में बसे भारत रत्न अटल जी का अभिनंदन किया।
प्रसिद्ध साहित्यकार और अटल जी के अनुज तुल्य श्री शैवाल सत्यार्थी इस कार्यक्रम के संयोजक थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. कृष्ण मुरारी शर्मा ने की और कार्यक्रम का संचालन पूर्व प्राचार्या एवं कवयित्री कादंबरी आर्य ने किया था।
इस कार्यक्रम में पूर्व एस. पी. चेतराम सिंह भदोरिया, बैजू कानूनगो, ईश्वरदयाल शर्मा, बी.एल.शर्मा, राज चड्डा, लक्ष्मण कानडे, राजहंस त्यागी, सुबोध चतुर्वेदी, कमलेश कैस ग्वालियरी, श्यामलाल माहौर, राजेश अवस्थी, अमर सिंह यादव, पुष्पा सिसोदिया, जयंती अग्रवाल, सत्या शुक्ला, रेखा दीक्षित, कुंदा जोगलेकर, डा. उर्मिल त्रिपाठी समेत कई अन्य साहित्यकारों ने ग्वालियर के इस गौरव स्तंभ को एक महान व्यक्तित्व, एक महान राजनेता और एक महान कवि के रूप में नमन करते हुए अपनी अपनी रचनाओं का पाठ किया।
ग्वालियर की अपनी एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा है और यह आयोजन इस परंपरा की जीती जागती मिसाल है। इस कार्यक्रम में शामिल कई लेखकों कवियों ने अटल जी के साथ जुड़े अपने संस्मरणों को भी साझा किया।
#डॉ. स्वयंभू शलभ
परिचय : डॉ. स्वयंभू शलभ का निवास बिहार राज्य के रक्सौल शहर में हैl आपकी जन्मतिथि-२ नवम्बर १९६३ तथा जन्म स्थान-रक्सौल (बिहार)है l शिक्षा एमएससी(फिजिक्स) तथा पीएच-डी. है l कार्यक्षेत्र-प्राध्यापक (भौतिक विज्ञान) हैं l शहर-रक्सौल राज्य-बिहार है l सामाजिक क्षेत्र में भारत नेपाल के इस सीमा क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए कई मुद्दे सरकार के सामने रखे,जिन पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न मंत्रालयों ने संज्ञान लिया,संबंधित विभागों ने आवश्यक कदम उठाए हैं। आपकी विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी,लेख और संस्मरण है। ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं l ‘प्राणों के साज पर’, ‘अंतर्बोध’, ‘श्रृंखला के खंड’ (कविता संग्रह) एवं ‘अनुभूति दंश’ (गजल संग्रह) प्रकाशित तथा ‘डॉ.हरिवंशराय बच्चन के 38 पत्र डॉ. शलभ के नाम’ (पत्र संग्रह) एवं ‘कोई एक आशियां’ (कहानी संग्रह) प्रकाशनाधीन हैं l कुछ पत्रिकाओं का संपादन भी किया है l भूटान में अखिल भारतीय ब्याहुत महासभा के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और साहित्य की उपलब्धियों के लिए सम्मानित किए गए हैं। वार्षिक पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए दिसम्बर में जगतगुरु वामाचार्य‘पीठाधीश पुरस्कार’ और सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अखिल भारतीय वियाहुत कलवार महासभा द्वारा भी सम्मानित किए गए हैं तो नेपाल में दीर्घ सेवा पदक से भी सम्मानित हुए हैं l साहित्य के प्रभाव से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जीवन का अध्ययन है। यह जिंदगी के दर्द,कड़वाहट और विषमताओं को समझने के साथ प्रेम,सौंदर्य और संवेदना है वहां तक पहुंचने का एक जरिया है।