आज सुबह से ही मूसलाधार बारिश हो रही थी । बच्चे घर पर ही थे । दोपहर का समय था बच्चों के साथ रिया बैठी बारिश का आनंद ले रही थी । अचानक ही किसी गहरे ख़्याल में खो सी गई । आँखो से अनायास ही आँसू छलक पड़े ।रितु ने पूछा माँ माँ कहाँ खो गईं !
कुछ नहीं बेटा यूँ ही । नहीं माँ कुछ तो है बोलो न ।
बेटे अनय ने कहा ज़रूर नाना जी के विषय में ही सोच रही होंगी । क्यों हैना माँ सही कहा न । रिया मुस्कुराए बिना न रह पाई बोली हाँ ! कितने अच्छे से समझता है तू अपनी माँ को । फिर यादों में खोई रिया ने अपने पापा के बारे में बताना शुरू किया ।
जब हम छोटे थे न और ऐसी बारिश होती तो तुम्हारे नाना शुद्ध घी में फूटे चने सिकवाया करते और सोफ़े पे बैठ कर पानी का आनंद लिया करते थे ।फिर हम सभी अठ्ठु खेला करते थे । जब हमारी दादी आतीं तो वो और नाना जी मिलकर बहुत चिटिंग किया करते थे । बचपन में हमलोगों ने बहुत खेल खेले । आजकल कोई नहीं खेलता ।
हमलोग एक लोहे की सलाख़ लिया करते थे जैसे ही पानी बंद होता हम सभी मोहल्ले के बच्चे इकट्ठा हो लोहे की छड़ को दूर फेंकते जिसकी जितनी दूर जाती वो जीत जाया करता । जब पानी गिरता तो घर पर ही कौड़ी और पत्ते खेला करते थे । साथ ही गरमा गरम भजिए ,फूटे चने , मूँगफली खाते । उस समय कुछ अलग ही माहौल हुआ करता था । आजकल तो किसी के पास इतना वक़्त ही नहीं होता ।जमाना हो गया बेटा पता नहीं याद भी नहीं है हमने वो चने कब खाए थे और कब ये खेल खेले थे । नाना नरम नरम भुट्टे लाते कढाई में कोयला सिलग़ाते और हमें सेंक कर दिया करते थे ।
रितु उठी उसने कहा चलो माँ आज हम नाना जैसे ही चने बनाते हैं । पापा भी दफ़्तर से आते होंगे फिर सब मिलकर आज चने खाएँगे और पत्ते खेलेंगे । भैया तुम भाभी को भी बुला लाओ । भाभी से कहना माँ के लिए गरमा गरम पकौड़े बना लाए। धत पगली ! पापा की डाँट खानी है क्या ? क्यों भाई क्याहुआ ! कुछ नहीं पापा बताती हूँ , कहते हुए रितु ने सारी बातें रमेश को बता दी । चलो भाई नीता पत्ते लेकर आओ आज हम सभी साथ मिलकर पकौड़े और पत्तों का आनंद लेंगे ।
*प्राकृतिक बरसात ही अच्छी लगती है तुम्हारी माँ की आँखे तो बस मुस्कुराती हुई ही अच्छी लगती हैं*
#अदिति रूसिया
वारासिवनी